मेरा नाम मीरा है, और यह मेरे जीवन की वह कहानी है जिसमें मैंने प्यार को अपनी पूरी ताक़त से जिया और उसी में पूरी तरह टूट गई।
जब मेरी मुलाक़ात अद्विक से हुई, तो मेरी ज़िंदगी में सब कुछ बदल गया। अद्विक शांत, थोड़ा अंतर्मुखी था, और मैं उसके विपरीत, बहुत भावुक और बोलचाल वाली थी। शायद यही विरोधाभास हमें एक-दूसरे की तरफ़ खींच लाया।
मैंने जब प्यार किया, तो मैंने बीच का रास्ता नहीं चुना। मैंने अपने आप को पूरी तरह से उस रिश्ते में समर्पित कर दिया। मैंने ‘टूटकर प्यार किया’—यह महज़ मुहावरा नहीं था, यह मेरी जीवनशैली थी। मैंने अपने सारे सपने, अपनी छोटी-छोटी आदतें, सब कुछ अद्विक की ज़रूरतों और ख़ुशी के इर्द-गिर्द केंद्रित कर दिया।
मेरे लिए, अद्विक सिर्फ़ एक प्रेमी नहीं था। वह मेरा भविष्य, मेरा सुरक्षित ठिकाना, और मेरी हर ख़ुशी का एकमात्र कारण था। मैंने अपने दोस्तों से कम बात करना शुरू कर दिया, मैंने अपने करियर की योजनाओं को इस तरह बदला कि वे अद्विक के रास्ते में बाधा न बनें।
मुझे लगता था कि मैं अपने प्यार से इस रिश्ते की हर कमी को पूरा कर सकती हूँ। जब वह उदास होता, तो मैं अपनी ख़ुशी कुर्बान कर देती थी। जब वह नाराज़ होता, तो मैं हमेशा पहले माफ़ी माँगती थी, भले ही मेरी ग़लती न हो। मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मेरे मन में एक अटूट विश्वास था: इतना गहरा, निस्वार्थ प्यार कभी अकेला नहीं छूट सकता।
मुझे लगता था कि मेरा यह समर्पण, मेरा यह विश्वास, हमारे रिश्ते को दुनिया की हर मुश्किल से बचा लेगा। मेरा प्यार हमारे रिश्ते की नींव था, और मैं आश्वस्त थी कि यह नींव इतनी मज़बूत है कि कोई तूफ़ान इसे हिला नहीं सकता।
मैंने बिना किसी शर्त के उस पर भरोसा किया, और मैंने अपनी पूरी दुनिया उसके हाथों में सौंप दी। मुझे यह बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि जिस व्यक्ति के लिए मैंने सब कुछ झोंक दिया, वह एक दिन इतनी आसानी से मुझे छोड़ देगा—और वह भी बिना कुछ कहे, बिना एक भी शब्द का स्पष्टीकरण दिए।
मेरा अटूट विश्वास धीरे-धीरे टूटना शुरू हुआ। यह रातोंरात नहीं हुआ, बल्कि बहुत धीमी गति से, एक भयानक ख़ामोशी के साथ हुआ।
पिछले कुछ महीनों से, अद्विक बदल गया था। वह शारीरिक रूप से मेरे पास होता, लेकिन भावनात्मक रूप से कहीं और खोया रहता। वह अब लड़ता नहीं था, न ही वह अपना गुस्सा दिखाता था। वह बस चुप रहता था।
जब मैं उससे पूछती, “अद्विक, क्या बात है? तुम मुझसे बात क्यों नहीं करते? क्या तुम्हें अब मैं अच्छी नहीं लगती?” तो वह बस कंधे उचका देता या कहता, “मीरा, तुम ज़रूरत से ज़्यादा सोचती हो। मैं बस थोड़ा व्यस्त हूँ।”
यही ‘व्यस्त हूँ’ और ‘ज्यादा मत सोचो’ वाले जवाब मेरे लिए सबसे बड़ी सज़ा बन गए थे। मुझे लगता था कि अगर वह मुझ पर चिल्लाता, या मुझे कोई कारण देता, तो मुझे कम तकलीफ़ होती। लेकिन उसकी चुप्पी ने मुझे हवा में लटका दिया था। मैं जानती थी कि कुछ ग़लत है, लेकिन मुझे लड़ने के लिए कोई दुश्मन नहीं मिल रहा था।
मैं रोज़ रात को रोती थी, और अगले दिन फिर से उम्मीद के साथ उसके पास जाती थी कि वह मुझसे खुलकर बात करेगा, लेकिन वह हर बार मुझे और ज़्यादा दूर धकेलता जाता था—बिना कहे, बस अपने बर्ताव से।
उसने लड़ना बंद कर दिया था, क्योंकि वह रिश्ते को बचाना नहीं चाहता था; वह बस इसे धीरे-धीरे मरने दे रहा था।
एक दिन, मैंने हार मान ली। मैंने उसे मैसेज किया: “अद्विक, अगर तुम जा रहे हो, तो प्लीज़ मुझे बता दो। मैं इस अनिश्चितता के साथ और नहीं जी सकती।”
कोई जवाब नहीं आया।
अगले दिन, मैंने उसे फ़ोन किया। फ़ोन बजता रहा। रात भर मैंने उसे दर्जनों मैसेज भेजे, जिसमें प्यार, गुस्सा, भीख—सब कुछ था।
फ़िर भी कोई जवाब नहीं आया।
अगले दिन सुबह, मैं उसके अपार्टमेंट पहुँची। दरवाज़ा बंद था। मैंने उसके मकान मालिक से बात की। उन्होंने मुझे बताया कि अद्विक ने कुछ दिन पहले ही अपना सामान पैक कर लिया और बिना बताए शहर छोड़कर चला गया। उसने कोई पता, कोई संपर्क सूत्र नहीं छोड़ा।
उस पल, मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। जिस शख़्स को मैंने अपनी पूरी दुनिया माना था, उसने मुझे छोड़ने के लिए एक मैसेज, एक फ़ोन कॉल, यहाँ तक कि एक छोटा-सा नोट भी ज़रूरी नहीं समझा।
उसने मुझे नफ़रत करने का, उसे बुरा भला कहने का, या उसे जवाबदेह ठहराने का कोई मौक़ा नहीं दिया। उसने बस मौन चुनाव किया—एक ऐसा चुनाव जो मेरे लिए सबसे क्रूर और दर्दनाक था।
उसने यह साफ़ कर दिया था कि मेरे टूटकर किए गए प्यार का उसके लिए कोई मूल्य नहीं था।
अद्विक के अचानक चले जाने के बाद, मेरी ज़िंदगी एक ऐसे अँधेरे कमरे में बदल गई जहाँ अनसुलझे सवालों की गूँज कभी ख़त्म नहीं होती थी।
उसने मुझे नफ़रत करने का भी मौक़ा नहीं दिया। अगर उसने कहा होता कि ‘मीरा, मुझे कोई और मिल गया है’ या ‘तुम्हारा प्यार मेरे लिए भारी पड़ रहा है’, तो शायद मैं उस दर्द को संभाल लेती। लेकिन उसका मौन चुनाव मेरे लिए सबसे भयानक सज़ा थी।
मैं रोज़ इन सवालों से जूझती थी:
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क्या मेरा प्यार उसके लिए बोझ बन गया था?
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क्या मैंने कुछ ग़लत किया था?
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क्या मैं इतनी भी हक़दार नहीं थी कि वह मुझे एक आख़िरी सच बता देता?
वह बिना कुछ कहे चला गया, और पीछे सिर्फ़ ये ख़ाली, गूँजते सवाल छोड़ गया।
शुरुआत के महीनों में, मैंने हर जगह उसे ढूँढा। मैंने उसके पुराने दोस्तों से संपर्क किया, उसकी सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल को बार-बार देखा—यह उम्मीद करते हुए कि कहीं न कहीं, कोई सुराग मिल जाए। लेकिन वह जैसे ज़मीन में समा गया था।
धीरे-धीरे, मुझे एहसास हुआ कि मैं जितनी तेज़ी से आगे बढ़ना चाहती थी, यह अधूरा अंत मुझे उतना ही कसकर पकड़ रहा था।
मैंने टूटकर प्यार किया, और उस प्यार ने मुझे ऐसी स्थिति में ला दिया जहाँ मेरे पास न तो कोई जवाब था और न ही कोई Closure (समाप्ति)। मेरे पास एक ऐसी कहानी थी, जिसका कोई अंत नहीं था।
आज, मैं आगे बढ़ गई हूँ। मैं काम करती हूँ, लोगों से मिलती हूँ। लेकिन मेरा दिल अभी भी उस जगह पर अटका हुआ है जहाँ अद्विक ने मुझे छोड़ा था—उस अनसुलझे दरवाज़े पर।
मैंने सीख लिया है कि सबसे बड़ा दर्द वह नहीं होता जो झगड़े से आता है, बल्कि वह होता है जब कोई व्यक्ति आपकी भावनाओं और आपके रिश्ते को इतना महत्वहीन समझता है कि वह आपको एक शब्द भी कहना ज़रूरी नहीं समझता।
मैंने टूटकर प्यार किया… और उसने बिना कुछ कहे, बिना किसी वजह के, दूर जाना चुन लिया।
और अब, मैं उस दर्द के साथ जीती हूँ, यह जानते हुए कि मेरा प्यार सत्य था, लेकिन उसका जाना भी एक क्रूर सत्य था।
मेरा दिल हमेशा उस सवाल के साथ रहेगा: “आखिर क्यों?”















