मेरा नाम नेहा है मुझे मेरी कंपनी के जूनियर एनालिस्ट, आरुष, से प्यार हो गया | यह मेरी कहानी है | ऑफिस/जॉब लव स्टोरी (Office Love)

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मेरा नाम नेहा है। मेरी उम्र 30 साल है, और मेरे कंधों पर ‘एलीट कंसल्टेंट्स’ जैसी बड़ी फर्म की मालकिन और सीईओ होने की ज़िम्मेदारी है। मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी और कड़वी सच्चाई मेरे अतीत में छिपी है। सात साल पहले, जब मैं सिर्फ 23 साल की थी, मेरी शादी हुई। वह रिश्ता महज़ छह महीने चला। मुझे पता चला कि मेरे पति के कई अफ़ेयर थे—एक गहरा धोखा। मैंने तुरंत तलाक़ ले लिया और उस दर्द से उबरने के लिए ख़ुद को पूरी तरह से काम में झोंक दिया। पिछले सात सालों से, मैंने अपने दिल के चारों ओर एक मज़बूत कॉर्पोरेट कवच बना रखा है। मेरे लिए प्यार अब सिर्फ़ एक ख़तरा था; मेरी ज़िंदगी में सिर्फ काम था।

मेरे ऑफिस में, मैं ‘आइस क्वीन’ कहलाती हूँ। मैं सख्त हूँ, मांग बहुत रखती हूँ, और भावनात्मक रूप से उपलब्ध नहीं हूँ। यही मेरी सुरक्षा है।

इसी बीच, हमारे फाइनेंस विभाग में एक नया जूनियर एनालिस्ट, आरुष, आया। वह सिर्फ़ 23 साल का था—उतना ही छोटा, जितना मेरी शादी टूटने के समय मैं थी। वह एक लंबी, गंभीर कॉर्पोरेट मीटिंग में शामिल हुआ, और उसकी आँखों में अनुभव की कमी थी, लेकिन एक अजीब-सी निर्दोष सच्चाई थी।

पहली बार जब हमारी बातचीत हुई, तो वह एक छोटी-सी डेटा एंट्री ग़लती के लिए माफ़ी माँगने मेरे कैबिन में आया। “मैम, माफ़ करना। यह मेरी पहली ग़लती है, और मैं इसे तुरंत ठीक कर दूँगा।”

मैंने उसे देखा, उसकी सच्चाई भरी आँखें। मेरे सात साल के कठोरपन के बावजूद, मुझे अजीब लगा। मैंने कड़क आवाज़ में कहा, “आरुष, ग़लती माफ़ है। लेकिन ‘एलीट कंसल्टेंट्स’ में ग़लतियाँ महंगी पड़ती हैं। अगली बार, ईमानदारी दिखाना, लेकिन काम को परफेक्ट रखना।”

वह सिर हिलाकर चला गया। उस दिन से, मैंने उसे नोटिस करना शुरू किया। वह हर काम पूरी ईमानदारी और दिल से करता था। वह बाक़ी जूनियर से अलग था; वह प्रतिस्पर्धा के बजाय, सीखने पर ध्यान देता था। उसकी सच्चाई और उसकी अच्छाई मेरे सात साल के बनाए कवच को धीरे-धीरे छूने लगी थी। यह एक ख़तरनाक एहसास था, क्योंकि मुझे लगा कि इस लड़के के पास वह चाबी है जो मेरे बंद दिल को खोल सकती है।

आरुष की ईमानदारी और उसकी अच्छाई ने मुझे खींचना शुरू कर दिया। उसकी उम्र और मेरे रुतबे का अंतर बहुत बड़ा था, लेकिन मुझे अब यह अंतर चुनौतीपूर्ण लगने लगा था। मैंने जानबूझकर उसे कुछ प्रोजेक्ट्स पर अपने साथ काम करने को दिया। मैं हमेशा सोचती थी, ‘यह लड़का मेरे लिए बहुत अच्छा है, लेकिन बहुत छोटा है।’

एक रात, हम देर तक एक मुश्किल वित्तीय विश्लेषण (Financial Analysis) पर काम कर रहे थे। तनाव बहुत था, और मैं थक चुकी थी।

“आरुष,” मैंने कॉफ़ी का घूंट लेते हुए पूछा, “तुम हमेशा इतने ख़ुश और संतुष्ट कैसे रहते हो? कॉर्पोरेट लाइफ तो बहुत तनावपूर्ण है।”

उसने मुस्कुराकर जवाब दिया, “मैम, मैं ख़ुश इसलिए रहता हूँ क्योंकि मुझे पता है कि मैं जो कर रहा हूँ, वह सही है। मेरा दिल साफ़ है। अगर मैं ग़लती करता हूँ, तो स्वीकार करता हूँ। सच्चाई से ज़्यादा सुकून देने वाला और कुछ नहीं।”

उसकी बात सुनकर मेरे दिल में कुछ हुआ। मैंने उसे अपने तलाक़ के बारे में, और सात साल पहले हुए धोखे के बारे में थोड़ा-सा बताया। मैंने यह बात किसी को नहीं बताई थी।

उसने मुझे न तो सहानुभूति दी, न ही अफ़सोस जताया। उसने बस कहा, “मैम, सात साल का वह दर्द सिर्फ़ आपको मज़बूत बनाने के लिए था। आप जैसी अच्छी इंसान को ख़ुद को किसी और की ग़लती के लिए सज़ा नहीं देनी चाहिए। आपको दूसरा मौका लेना चाहिए।”

उसकी निर्दोष समझदारी ने मेरे 30 साल के ‘सीईओ लॉजिक’ को चुनौती दी। मुझे लगा, हाँ, यह वह इंसान है जिसे मैं अपनी ज़िंदगी में दूसरा मौका देना चाहती हूँ। मैं ख़ुद को रोक नहीं पाई। मेरा दिल, सात साल बाद, फिर से धड़कने लगा था, और मैं जानती थी कि मैं उससे प्यार करने लगी हूँ। मुझे लगा कि मैं उसका ख़्याल रखूँगी और उसे हर दुख से बचाऊँगी। अब मुझे सिर्फ़ एक ही डर था—उसे खोने का।

मेरी दोस्ती जल्द ही आरुष के प्रति गहरे प्यार में बदल गई। मैं उसे हर रोज़ देखती थी, उसकी अच्छाई देखती थी, और सोचती थी कि यह इंसान कभी धोखा नहीं देगा। मुझे उसके लिए माँ जैसा ख़याल और जीवनसाथी जैसा प्यार महसूस होने लगा था। मैं सोचती थी कि जिस तरह से मैं कंपनी को संभालती हूँ, मैं उसे भी पूरी ज़िंदगी संभाल लूँगी।

लेकिन, मेरा प्यार एक तरफ़ा नहीं रहा। आरुष भी मेरी ओर आकर्षित होने लगा था। उसके हाव-भाव, उसकी आँखें, सब कुछ बदल गया था।

एक दिन, मैं एक तनावपूर्ण क्लाइंट मीटिंग से वापस आई। मुझे अचानक तेज़ सिरदर्द हुआ, और मैं अपनी डेस्क पर लगभग ढह गई। मैं तुरंत ऑफिस छोड़कर घर नहीं जा सकती थी, क्योंकि एक और मीटिंग थी।

आरुष ने देखा। वह बिना किसी इजाज़त के मेरे कैबिन में आया। “मैम, आप ठीक नहीं लग रही हैं। मैं आपके लिए अदरक वाली चाय और एक टैबलेट लाया हूँ।”

मैंने विरोध नहीं किया। उसने मेरा माथा छुआ। उसका साधारण स्पर्श, उसकी गहरी चिंता, मेरे लिए बहुत ज़्यादा थी।

मैंने उससे पूछा, “तुम मेरी इतनी परवाह क्यों करते हो, आरुष? मैं तुमसे सात साल बड़ी हूँ, तुम्हारी बॉस हूँ। क्या तुम्हें लगता है कि यह सही है?”

उसने मेरा हाथ पकड़ा, और उसकी आवाज़ में अब कोई हिचकिचाहट नहीं थी। “मैम, मैं आपकी इज़्ज़त करता हूँ। लेकिन मैं उस ताक़त से प्यार करता हूँ जो आप हैं, उस अकेलेपन से नहीं जो आप महसूस करती हैं। मुझे पता है कि आप मेरे से सात साल बड़ी हैं, और आप तलाक़शुदा हैं। लेकिन जब मैं आपको देखता हूँ, तो मुझे सिर्फ़ एक ख़ूबसूरत और अकेली महिला दिखती है, जिसका दिल बहुत अच्छा है।”

उसने आगे कहा, “आपका अतीत मेरा नहीं है। आपका दिल बिल्कुल अच्छा है, और मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मेरा दिल भी आपके लिए धड़कता है, नेहा।”

उसने मेरा हाथ पकड़कर अपनी छाती पर रखा। उसकी दिल की धड़कन तेज़ थी।

उस क्षण, मैंने महसूस किया कि मेरी ज़िंदगी में वह ख़ुशी वापस आ सकती है। यह वह सच्चाई थी जो मुझे सात साल पहले चाहिए थी। मेरा दिल पूरी तरह से पिघल चुका था। मैंने तय कर लिया कि मैं उससे शादी करूँगी, और उसका ख़्याल रखूँगी। अब बस दुनिया के सामने यह सच्चाई बतानी थी, खासकर उसके परिवार को।

आरुष के इज़हार के बाद, हमने डेटिंग शुरू कर दी, लेकिन चुपचाप। यह एक अद्भुत अनुभव था; मेरे कठोर कॉर्पोरेट जीवन में एक ताज़ी हवा का झोंका। मैं उससे प्यार करती थी, और वह भी मुझसे उतना ही प्यार करता था। अब हमारे रिश्ते को अगले स्तर पर ले जाने का समय था—यानी दुनिया और उसके परिवार के सामने सच बताना।

एक शाम, मैंने आरुष को अपने तलाक़ का पूरा सच और अपनी ज़िंदगी के पिछले सात साल का अकेलापन फिर से विस्तार से बताया। मैंने बताया कि कैसे मैंने ख़ुद को दूसरा मौका नहीं दिया था, और कैसे वह ही मेरी एकमात्र उम्मीद था।

आरुष ने मेरा हाथ पकड़ा। “नेहा, आपका अतीत मुझे बिल्कुल परेशान नहीं करता। आपका तलाक़ आपकी ग़लती नहीं थी। मैं आपसे प्यार करता हूँ, और मैं आपको वह सब ख़ुशी दूँगा, जो आपको कभी नहीं मिली। मैं जानता हूँ कि आप मेरा हमेशा ख़्याल रखेंगी।”

वह पहले से ही तैयार था, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती थी उसके माता-पिता।

आरुष ने हिम्मत जुटाई और एक हफ़्ते बाद, उसने अपने माता-पिता को डिनर पर बुलाया। मैंने अपनी सबसे अच्छी साड़ी पहनी, लेकिन मेरे दिल में घबराहट थी।

जब उसने पहली बार सबके सामने हमारे रिश्ते का सच बताया, तो उनके परिवार में तूफ़ान आ गया।

आरुष के माता-पिता मुझसे बहुत नाराज़ थे। उसके पिता ने गुस्सा होकर कहा, “आप उससे सात साल बड़ी हैं! आप उसकी बॉस हैं! आप तलाक़शुदा हैं! क्या आप हमारे बेटे की ज़िंदगी बर्बाद कर देंगी? वह अभी करियर शुरू कर रहा है!”

उसकी माँ की आँखों में निराशा थी, “वह अभी 23 साल का है! तुम क्यों चाहती हो कि वह इतनी जल्दी ज़िम्मेदारियों में बँध जाए?”

मैंने शांत रहकर उनकी बात सुनी। फिर मैंने धीरे से बोलना शुरू किया। “अंकल, आंटी, मुझे पता है कि आप चिंतित हैं। लेकिन जान लीजिए, मैंने पिछले सात सालों से इस कंपनी को अकेले खड़ा किया है। मेरे लिए वादे, पैसे से ज़्यादा क़ीमती हैं। मैं आरुष से सच्चा प्यार करती हूँ, और मैं उसे ख़ुशी दूँगी और उसका हमेशा ख़्याल रखूँगी।”

मैंने आँखों में आँसू लिए कहा, “मुझे एक मौका दीजिए। मैं साबित करूँगी कि मैं आपकी बेटी की तरह हूँ, और मैं आरुष को किसी भी तरह का दर्द नहीं दूँगी, जो मुझे मिला था। मुझे यह दूसरा मौका चाहिए, क्योंकि आरुष बहुत अच्छा है।”

आरुष ने अपने माता-पिता से दृढ़ता से कहा, “माँ, पिताजी, नेहा दुनिया की सबसे अच्छी इंसान हैं। मुझे उसकी उम्र या अतीत से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। वह मेरी बॉस नहीं, मेरी जीवनसाथी है। मैं उससे प्यार करता हूँ।”

आरुष की साफ़गोई और उसका विश्वास देखकर उसके माता-पिता का गुस्सा कम हुआ, लेकिन उनके दिल में संदेह अब भी बाक़ी था। उन्होंने कहा, “हम तुम्हें मौका देंगे, नेहा। लेकिन यह साबित करना होगा कि तुम हमारे बेटे के लायक हो।”

आरुष के माता-पिता का गुस्सा भले ही कम हो गया था, लेकिन उनका संदेह अब भी बाक़ी था। अगले कुछ हफ्तों में, मैंने उनके दिल जीतने के लिए अपनी पूरी कोशिश की। मैं उनके साथ समय बिताती थी, उनकी मदद करती थी, और उन्हें दिखाती थी कि मेरा प्यार आरुष के लिए कितना सच्चा और गंभीर है। उन्हें धीरे-धीरे एहसास हो गया कि मेरी उम्र और मेरा तलाक़ मेरे व्यक्तित्व को परिभाषित नहीं करता; मेरी ईमानदारी और आरुष के प्रति मेरा गहरा समर्पण ही मायने रखता है।

उन्हें यह भी एहसास हुआ कि मैं सिर्फ आरुष को चाहती नहीं थी, बल्कि उसे सुरक्षित रखना चाहती थी।

जब उन्होंने हमें औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया, तो वह मेरे लिए किसी बड़ी बिज़नेस डील जीतने से भी बड़ी सफलता थी। हमने एक सादे और ख़ूबसूरत समारोह में शादी कर ली।

शादी के बाद, मैंने अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा फ़ैसला लिया। मैंने अपने वादे को पूरा करने के लिए अपनी कंपनी, ‘एलीट कंसल्टेंट्स’, के सीईओ का पद एक भरोसेमंद व्यक्ति को सौंप दिया। मैं सिर्फ़ बोर्ड मेंबर बनी रही। मैं अब आरुष की पत्नी थी, उसकी पार्टनर, न कि उसकी बॉस। मैं नहीं चाहती थी कि हमारा रिश्ता कभी भी कॉर्पोरेट प्रतिस्पर्धा या संदेह के बोझ तले दबे।

आरुष ने मुझे वह ख़ुशी दी जो मैंने सात साल पहले खो दी थी। वह मेरे लिए मेरा दूसरा मौका, मेरा सबसे अच्छा दोस्त और मेरा सबसे सच्चा प्यार था।

और मैंने अपना हर पल आरुष की देखभाल, उसकी ख़ुशी और उसके सपनों को पूरा करने में लगा दिया। मैं जानती थी कि उसके दिल में कोई छल नहीं है, और मैं उसे कभी भी उस तरह का दर्द नहीं होने दूँगी जो मैंने सहा था। मैंने उसे अपनी पिछली ज़िंदगी के हर डर और धोखे से सुरक्षित रखा।

आरुष, मेरा 23 साल का जूनियर, जिसने मेरी 30 साल की ज़िंदगी को दूसरा मौका दिया, अब मेरा सब कुछ था। हमारे प्यार ने साबित कर दिया कि दिल की अच्छाई उम्र या अतीत के दर्द से बड़ी होती है। मैंने अपना ख़्याल रखना छोड़ दिया था, लेकिन अब मेरा प्यार, आरुष, और मैं एक-दूसरे का ख़्याल रखते थे, और यह हमारी सबसे बड़ी सफलता थी।

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