मेरा नाम सार्थक है और मुझे काव्या ने धोखा दिया | Sad Love Stories

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मेरा नाम सार्थक है। मेरी कहानी प्रेम की नहीं, बल्कि प्रेम की नियति की कहानी है। यह बताती है कि कैसे कुछ रिश्ते शुरू से ही इस तरह से लिखे जाते हैं कि उन्हें सिर्फ़ अधूरा ही रहना होता है।

मैं एक छोटे से गाँव से आया था। मेरे सपने भले ही बड़े थे—शहर जाकर एक बड़ा इंजीनियर बनने का—लेकिन मेरे परिवार की ज़िम्मेदारियाँ उससे भी बड़ी थीं। हर सुबह मैं सूरज को देखता और सोचता कि मुझे बहुत दूर जाना है।

फिर मेरी ज़िंदगी में काव्या आई।

वह हमारे कॉलेज में दाख़िला लेने आई थी, शहर के सबसे अमीर और प्रतिष्ठित परिवार की इकलौती बेटी। उसके कपड़े, उसका रहन-सहन, उसका आत्मविश्वास—सब कुछ मेरी दुनिया से अलग था। वह एक ऊँचे पहाड़ की तरह थी और मैं उसके तलहटी में बहने वाली छोटी-सी नदी।

लेकिन प्यार कहाँ सीमाएँ देखता है?

हम एक लाइब्रेरी के कोने में मिले थे। मैंने उसे किसी मुश्किल सवाल का जवाब दिया था। उसकी पहली मुस्कान, किसी तेज़ रोशनी की तरह थी जिसने मेरे अंदर के अंधेरे को एक पल में दूर कर दिया।

धीरे-धीरे, हमारी मुलाक़ातें दोस्ती में बदलीं, और जल्द ही, वह गहरी भावना आई जिसने हम दोनों को बाँध दिया। काव्या को मेरी ईमानदारी, मेरे संघर्ष और मेरे सपनों से प्यार हो गया। और मैं… मैं काव्या के साफ़ दिल, उसकी निडरता और उस पवित्र प्रेम में खो गया, जो उसने मुझे दिया था।

हम घंटों बारिश में साथ टहलते, कैंटीन में सबसे सस्ती चाय पीते और अपने भविष्य के बारे में बात करते। हम हँसते हुए उन सामाजिक दूरियों को ख़ारिज कर देते थे जो हमें अलग करती थीं।

काव्या मुझसे कहती थी, “सार्थक, जब तुम बड़े आदमी बनोगे, तो मैं तुमसे शादी करूँगी, चाहे पापा कुछ भी कहें।”

और मैं उस पर अपनी जान से ज़्यादा विश्वास करता था। मैं दिन-रात मेहनत करता था, यह सोचकर कि मैं एक दिन इतना सफल बनूँगा कि कोई उसकी तरफ़ उंगली नहीं उठा पाएगा। मेरे लिए काव्या सिर्फ़ मेरी प्रेमिका नहीं थी; वह मेरे हर प्रयास की प्रेरणा थी।

हमारा प्यार एक ऐसी नदी की तरह बह रहा था, जो दो अलग-अलग ज़मीनों को छूते हुए बहती थी, लेकिन मुझे पूरा यक़ीन था कि हम आख़िरकार एक सागर में ज़रूर मिलेंगे।

मुझे यह बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि काव्या के परिवार की योजनाएँ और पारिवारिक सम्मान की बेड़ियाँ इतनी मज़बूत थीं कि हमारे प्यार का पवित्र बंधन भी उन्हें तोड़ नहीं पाएगा। हमारा प्यार महज़ दो समानांतर किनारे बनकर रह जाएगा, जिनके बीच से नदी गुज़रती रहेगी, पर जो कभी मिल नहीं पाएंगे।

कॉलेज ख़त्म होते ही, हमें पहली बार एहसास हुआ कि दुनिया हमारे प्यार की परवाह नहीं करती। सार्थक को छोटी-मोटी नौकरी मिली, जहाँ वह दिन-रात पसीना बहाता था, जबकि काव्या के घर में उसके भविष्य को लेकर बड़े-बड़े फ़ैसले लिए जा रहे थे।

काव्या के पिता, जो समाज में अपनी इज़्ज़त और रुतबे के लिए जाने जाते थे, ने उसकी शादी एक बड़े बिज़नेसमैन के बेटे से तय कर दी। यह एक ऐसा रिश्ता था जो उनके पारिवारिक ‘स्तर’ के अनुरूप था, और जिसमें काव्या की पसंद की कोई जगह नहीं थी।

जब काव्या ने अपने पिता के सामने सार्थक का नाम लिया, तो घर में तूफ़ान आ गया। उसके पिता ने उसे धमकी नहीं दी, बल्कि भावनात्मक रूप से तोड़ दिया।

“काव्या,” उसके पिता ने उदासी से कहा, “मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी यह रुतबा बनाने में लगा दी। क्या तुम एक ‘छोटे लड़के’ के लिए मेरी सारी मेहनत को मिट्टी में मिला दोगी? क्या तुम्हें अपने पिता की इज़्ज़त प्यारी नहीं है?”

काव्या के लिए, अपने पिता का सम्मान और उनकी बिगड़ती सेहत, उसके प्यार से ज़्यादा भारी पड़ने लगी। वह अंदर से पूरी तरह टूट गई थी।

उसने एक रात सार्थक को फ़ोन किया। उसकी आवाज़ में वह पुरानी निडरता नहीं थी, सिर्फ़ एक काँपती हुई मजबूरी थी।

“सार्थक… मेरे पापा बहुत बीमार हैं। डॉक्टर्स कह रहे हैं कि उन्हें अब और तनाव नहीं लेना चाहिए,” काव्या रो रही थी। “और वह… वह मुझसे कहते हैं कि अगर मैंने शादी से मना किया, तो वह टूट जाएँगे।”

सार्थक सब कुछ समझ गया। वह जानता था कि इस वक़्त वह काव्या को कोई स्थिरता नहीं दे सकता। वह अपने प्यार को काव्या के परिवार के लिए बोझ नहीं बनाना चाहता था।

उसने अपने दिल के दर्द को दबाते हुए, बहुत ही शांत और कठोर आवाज़ में कहा, “काव्या, तुम्हारी ख़ुशी ज़रूरी है। अगर तुम्हारे पिता की ख़ुशी तुम्हें यह फ़ैसला लेने को मजबूर कर रही है, तो तुम सही हो।”

काव्या रोती रही, “तुम क्यों नहीं रोकते मुझे? तुम क्यों नहीं कहते कि मैं तुम्हारे साथ भाग जाऊँ?”

सार्थक ने अपनी मुट्ठी भींच ली, उसकी आँखों में भी आँसू थे। उसने फुसफुसाते हुए कहा, “मैं तुम्हें वहाँ नहीं खींच सकता, काव्या, जहाँ मैं तुम्हें ख़ुशहाल भविष्य देने का वादा नहीं कर सकता। मैं तुम्हें तुम्हारी ज़िम्मेदारी से आज़ाद करता हूँ। तुम आज़ाद हो।”

यह उनका आख़िरी संवाद था। सार्थक ने अपने प्यार को, अपनी सबसे बड़ी उम्मीद को, सिर्फ़ काव्या की ख़ुशी के लिए कुर्बान कर दिया। यह उसके जीवन का सबसे बड़ा बलिदान था।

सार्थक ने फ़ोन काट दिया। वह जानता था कि उसने सिर्फ़ एक रिश्ते का अंत नहीं किया, बल्कि उसने अपनी आत्मा का एक हिस्सा हमेशा के लिए खो दिया था।

सार्थक के फ़ोन काटने के बाद, काव्या की दुनिया ने अपनी धुरी बदल ली। कुछ हफ़्तों बाद, उसकी शादी तय समय पर उसी बड़े बिज़नेसमैन के बेटे से हो गई।

सार्थक उस दिन अपने घर में चुपचाप बैठा रहा। उसने जानबूझकर उस शहर में नौकरी ली थी जहाँ काव्या रहती थी, ताकि कम से कम वह उसी हवा में साँस ले सके।

शादी वाले दिन, सार्थक दूर से काव्या के आलीशान घर के पास खड़ा था। उसने काव्या को दुल्हन के लिबास में देखा—वह कितनी ख़ूबसूरत लग रही थी, पर उसके चेहरे पर वह बेफ़िक्र हँसी नहीं थी जो कभी सार्थक के साथ हुआ करती थी। उसकी आँखें उदास थीं, जैसे वह किसी और ही दुनिया में खोई हुई हो।

जब काव्या की विदाई हुई, तो सार्थक ने अपनी मुट्ठी में एक पुरानी, मुड़ी हुई फ़ोटो दबा रखी थी। यह उनकी पहली मुलाक़ात की फ़ोटो थी। जब काव्या की गाड़ी उसकी आँखों से ओझल हो गई, तो सार्थक ने उस फ़ोटो को निकाला। उसकी आँखें भर आईं। उसने फ़ोटो को चूमा और फिर धीरे-धीरे, लेकिन दृढ़ता से, उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए।

यह सिर्फ़ एक फ़ोटो नहीं थी, यह उनके साझा भविष्य का प्रमाण था, जिसे सार्थक ने हमेशा के लिए मिटा दिया।

उसने ख़ुद से वादा किया कि वह अब अपनी ज़िम्मेदारियों से नहीं भागेगा। उसने दोगुनी मेहनत की। आने वाले सालों में, सार्थक ने अपार सफलता हासिल की। उसने अपनी कंपनी बनाई, खूब पैसा कमाया, और समाज में वह रुतबा पाया, जिसकी कल्पना उसने कभी काव्या के साथ की थी।

आज सार्थक के पास सब कुछ है—बड़ी गाड़ी, आलीशान घर और सम्मान। लेकिन उसके पास वह चीज़ नहीं है जिसके लिए उसने यह सब हासिल किया था।

कभी-कभी, वह किसी इवेंट में काव्या को देखता है। वह हमेशा अपने पति के साथ होती है, एक सफल पत्नी की भूमिका निभाती हुई। उनकी आँखें मिलती हैं। एक पल के लिए, दस साल पहले का प्यार उनकी नज़रों में तैर जाता है, एक अनकहा दर्द दोनों को घेर लेता है। फिर काव्या एक हल्की, पेशेवर मुस्कान देती है और आगे बढ़ जाती है।

सार्थक जानता है कि काव्या ख़ुश है, क्योंकि वह अपनी ज़िम्मेदारी निभा रही है। और वह जानता है कि वह भी सफल है, लेकिन उसका दिल हमेशा अधूरा रहेगा।

आज, वे दोनों ज़िंदगी की नदी के दो किनारे हैं—दोनों ही शानदार, दोनों ही मज़बूत, लेकिन वे हमेशा एक-दूसरे के समानांतर चलेंगे, इतने करीब होकर भी कभी मिल नहीं पाएंगे। उनका प्यार ज़िंदा है, लेकिन एक दर्दनाक सच्चाई के रूप में: सच्चे प्यार को कभी-कभी सिर्फ़ याद बनकर रहना पड़ता है।

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