मेरा नाम सनाया है, और यह कहानी मेरे जीवन के उस दौर की है जब मैं 23 साल की थी। मेरा जीवन एक सधी हुई किताब जैसा था—न कोई ज़्यादा रोमांच, न कोई अप्रत्याशित मोड़। मेरे लिए दुनिया बहुत ही सरल थी: मेहनत करो, सपने देखो और अपने परिवार को ख़ुश रखो। मुझे कभी नहीं लगा था कि मेरी इस शांत दुनिया में कोई भूचाल आ सकता है।
फिर मेरी ज़िंदगी में विक्रम आया।
वह हमारे दफ़्तर में एक नया प्रोजेक्ट मैनेजर बनकर आया था। मैं पहली बार में ही उससे प्रभावित नहीं हुई थी, लेकिन जब हम साथ में काम करने लगे, तो मुझे उसकी बातों में एक अजीब-सी गहराई महसूस हुई। वह बहुत समझदार था, हर चीज़ को एक अलग नज़रिए से देखता था, और उसकी मुस्कान… उसकी मुस्कान में एक जादू था, जो मेरी उदासी को भी ख़त्म कर देता था।
धीरे-धीरे, हमारी दोस्ती गहरी होती गई। लंच ब्रेक में, देर शाम तक ऑफ़िस की खिड़की के पास खड़े होकर, हम सिर्फ़ काम की नहीं, बल्कि ज़िंदगी के मायने, सपनों और डर के बारे में बात करते थे। विक्रम ने मुझे पहली बार सिखाया कि अपने डर को छुपाने की नहीं, बल्कि उन्हें स्वीकार करने की ज़रूरत होती है।
एक शाम, ऑफ़िस के बाहर तेज़ बारिश हो रही थी। हम कैब का इंतज़ार कर रहे थे। विक्रम ने अचानक मेरी तरफ़ देखा, उसकी आँखें कुछ कह रही थीं, जो उसके होंठों पर नहीं था।
उसने बहुत धीरे से कहा, “सनाया, तुम्हें पता है? तुम्हारी आँखें… बारिश की बूँदों की तरह हैं—साफ़, शांत, पर अंदर बहुत कुछ छिपा है।”
उसने पहली बार मेरा हाथ छुआ। उस स्पर्श में एक अजीब-सी गर्माहट थी, जिसने मेरे दिल को अंदर तक झकझोर दिया। उस पल, मुझे लगा कि मैं अब वह ‘शांत’ सनाया नहीं रही। मैं विक्रम की सनाया बन गई।
हमने उसी दिन, बिना किसी औपचारिक घोषणा के, एक-दूसरे को स्वीकार कर लिया।
हमारा प्यार एक ऐसी कविता बन गया, जिसकी हर पंक्ति भावनाओं से भरी थी। वह मेरी हर छोटी-छोटी चीज़ याद रखता था—मुझे कौन-सी चाय पसंद है, मुझे अँधेरे से डर लगता है, मेरी सबसे बड़ी इच्छा क्या है। मैंने उसे अपने जीवन का हर पन्ना खोलकर दिखा दिया था। वह मेरा दोस्त था, मेरा प्रेमी था, और मेरे हर सवाल का जवाब था।
मैंने अपने दिल का दरवाज़ा पहली बार खोला था, और मैंने उसे अपनी पूरी आत्मा, अपना पूरा विश्वास दे दिया था। मैंने हर रात उसके साथ हमारे भविष्य के सपने बुने थे—एक छोटी-सी बालकनी, जहाँ हम साथ में कॉफ़ी पिएँगे; बच्चों की हँसी जो हमारे घर को गूँजायेंगी; और सबसे ज़रूरी, बुढ़ापे तक एक-दूसरे का अटूट साथ।
मुझे लगता था कि मैं दुनिया की सबसे ख़ुशक़िस्मत लड़की हूँ, क्योंकि मेरा प्यार सिर्फ़ एक भावना नहीं था, यह जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई था। यह प्यार मुझे इतना मज़बूत बनाता था कि मुझे लगता था कि मैं उसके साथ मिलकर दुनिया की हर मुश्किल का सामना कर सकती हूँ।
मुझे यह बिल्कुल पता नहीं था कि जिस प्यार को मैं अपना सबसे बड़ा सहारा मान रही थी, वही एक दिन मेरी सबसे बड़ी कमज़ोरी और मेरे दिल टूटने का सबसे कड़वा कारण बन जाएगा।
हमारा रिश्ता चार साल तक गहरा, अटूट और विश्वास से भरा रहा। लेकिन जैसे ही चौथा साल शुरू हुआ, मैंने अपने प्यार के मौसम में बदलाव महसूस करना शुरू कर दिया।
विक्रम अब पहले जैसा नहीं रहा था।
पहले वह अपने काम से जुड़ी छोटी-छोटी बातें भी मुझसे साझा करता था, लेकिन अब उसने एक अजीब-सी गोपनीयता ओढ़ ली थी। हमारे शाम के कॉल छोटे होने लगे। जब मैं उससे पूछती कि वह कहाँ था, तो वह झल्ला जाता और कहता, “तुम हर बात में इतनी पूछताछ क्यों करती हो?”
मेरे दिल में एक ठंडक दौड़ जाती थी। यह वह विक्रम नहीं था, जो मुझे ‘शांत समंदर’ कहता था।
मैंने हर बार ख़ुद को समझा लिया कि शायद मैं ही ज़्यादा सोच रही हूँ। मैंने उसके लिए और ज़्यादा वक़्त निकालना शुरू किया, उसके दोस्तों को पसंद करने की कोशिश की, और उसके नए शौक़ में रुचि दिखाई—यह सब इस डर से कि कहीं वह मुझसे दूर न चला जाए। मैंने अपनी ज़रूरतों को ख़त्म कर दिया और उसकी ज़रूरतों की दासी बन गई।
पर सच यह था कि आप कितनी भी कोशिश कर लें, जो धागा टूटने वाला होता है, वह अंततः टूट ही जाता है।
एक दिन, मुझे उसके फ़ोन में एक मैसेज दिखा—एक ऐसी महिला का मैसेज, जिसमें एक ऐसी आत्मीयता थी, जो सिर्फ़ हमारे रिश्ते में हुआ करती थी। मैसेज में लिखा था: “तुम्हारे साथ वक़्त बिताना कितना आसान है, विक्रम। शुक्रिया।”
मेरा दिल धड़कना भूल गया। मेरे हाथ काँप रहे थे। मेरे दिमाग़ ने कहा कि यह सिर्फ़ दोस्त होगी, लेकिन मेरे अंदर की ईशा जानती थी कि यह सिर्फ़ दोस्ती नहीं है। यह पहचान छुपाने का पहला संकेत था।
मैंने उससे सीधे पूछा। उस रात, मेरे घर में मोमबत्तियाँ जली थीं, मैंने उसके पसंदीदा पकवान बनाए थे—लेकिन माहौल में सिर्फ़ ज़हर घुला था।
“विक्रम, यह कौन है?” मैंने बिना रोए, पर काँपते हुए पूछा।
उसने मेरी आँखों में देखने की हिम्मत भी नहीं की। उसने बहुत ही लापरवाही से कहा, “वह मेरी क्लाइंट है, सनाया। तुम हर चीज़ में शक क्यों करती हो? तुम बहुत इमोशनल हो।”
उसने मुझे मेरे सबसे बड़े गुण—मेरी भावनाएँ—के लिए शर्मिंदा किया।
मैंने ज़ोर देकर कहा, “शक नहीं है, यह सच है, विक्रम। मैं तुम्हारे साथ चार साल रही हूँ। मैं जानती हूँ कि तुम कब झूठ बोल रहे हो।”
उसने हार मान ली, पर हार मानने में भी कोई पछतावा नहीं था।
“ठीक है,” उसने कहा, अपनी आवाज़ में एक अंतिम निर्णय लेते हुए, “हाँ। मैं बदल गया हूँ। मुझे अब वह सब नहीं चाहिए जो तुम दे रही हो। मुझे माफ़ी दो, पर मैं अब इस रिश्ते को और नहीं घसीट सकता।”
मुझे लगा जैसे किसी ने मेरे सीने में गरम चाकू घोंप दिया हो और फिर उसे घुमा दिया हो। दर्द इतना असहनीय था कि मैं चीख़ भी नहीं पाई।
मैंने टूटी हुई आवाज़ में पूछा, “और मैं? मेरे चार साल का भरोसा? वह प्यार जो मैंने तुम्हें दिया था? उसका क्या?”
“तुम एक अच्छी लड़की हो,” उसने कहा। और यही वह सबसे बुरा वाक्य था जो मैंने कभी सुना था। उसने मुझे एक ‘अच्छी लड़की’ कहकर, हमारे चार साल के प्यार को एक साधारण अवॉर्ड में बदल दिया, जिसे वह अब लौटा रहा था।
वह उठा और दरवाज़े की तरफ़ बढ़ा। मेरे अंदर की हर आवाज़ उसे रुकने के लिए चिल्ला रही थी, लेकिन मेरे होंठ सिल गए थे। मैंने उसे जाने दिया।
जब दरवाज़ा बंद हुआ, तो उस असहनीय ख़ामोशी में, मुझे अपनी साँसें भी सुनाई दे रही थीं। मेरा शरीर ज़मीन पर बैठ गया। मैं रोई नहीं, मेरे पास रोने के लिए आँसू ही नहीं बचे थे। मेरे अंदर सब कुछ मर चुका था।
मैंने उस रात महसूस किया कि सबसे बड़ा धोखा यह नहीं था कि उसने किसी और को चाहा। सबसे बड़ा धोखा यह था कि उसने मुझे मेरे आत्म-सम्मान से दूर कर दिया और मुझे यह मानने पर मजबूर किया कि मेरा प्यार काफ़ी नहीं था।
विक्रम के जाने के बाद, मेरी ज़िंदगी एक ऐसे खाली कैनवास की तरह हो गई जिस पर कभी रंगों की सबसे ख़ूबसूरत पेंटिंग बनी थी। सब कुछ मिट चुका था, सिवाय दर्द के कुछ गहरे दाग़ों के।
शुरुआती कुछ हफ़्ते तो भयानक थे। मैं एक सज़ा काट रही थी—वह सज़ा जो मैंने दी नहीं थी। मैं फ़ोन को हर पल देखती थी, उम्मीद करती थी कि शायद उसका नाम स्क्रीन पर फ्लैश हो जाए। हर दरवाज़े की दस्तक मुझे भ्रमित करती थी।
मेरा कमरा मेरी जेल बन गया था। मैं बाहर की दुनिया से कट गई। जब मैं आईने में देखती, तो मुझे वह सनाया नहीं दिखती थी जिसे मैं जानती थी—उसकी जगह एक टूटी हुई, हारी हुई परछाई थी।
सबसे ज़्यादा तकलीफ़ तब होती थी जब मैं रात को उठती और देखती कि बिस्तर पर वह जगह ख़ाली है, जहाँ कभी वह सोया करता था। मैं रोती नहीं थी; मैं बस उस खालीपन को महसूस करती थी जो अब मेरे अंदर और बाहर दोनों जगह था।
एक दिन, मैं अपनी बालकनी में बैठी थी। मेरे हाथ में उसका दिया हुआ एक पुराना गिफ्ट था। मैंने उसे देखा और अचानक मुझे लगा कि मैं कितनी कमज़ोर बन गई हूँ। मेरा जीवन, मेरी पहचान, मेरे सपने—सब कुछ उस एक व्यक्ति पर निर्भर हो गया था जिसने मुझे इतनी आसानी से छोड़ दिया।
उसी पल, मेरे अंदर एक छोटी-सी आवाज़ गूंजी: “बस, सनाया। अब और नहीं।”
वह आवाज़ गुस्से की नहीं, बल्कि आत्म-सम्मान की थी।
मैंने उठकर वह बक्सा खोला, जिसमें हमारी यादें थीं। मैंने न तो कोई चीज़ जलाई और न ही फेंकी। मैंने बस हर चीज़ को देखा, गहरी साँस ली, और स्वीकार किया: “यह ख़त्म हो गया है।”
मैंने उस बक्से को बंद किया और उसे अपने घर के एक अँधेरे कोने में रख दिया। यह मेरी तरफ़ से उस रिश्ते को दी गई अंतिम विदाई थी।
इसके बाद मैंने अपनी ज़िंदगी के टुकड़े जोड़ना शुरू किया। यह आसान नहीं था। हर सुबह एक नई लड़ाई थी।
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मैंने अपने काम पर ध्यान देना शुरू किया।
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मैंने पुरानी दोस्तियों को फिर से ज़िंदा किया।
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सबसे ज़रूरी, मैंने अकेले रहना सीखा।
जब मैं अकेली होती थी, तो मैं अपने डर का सामना करती थी। मैंने सीखा कि मेरी खुशी की चाबी विक्रम के पास नहीं थी, वह हमेशा मेरे पास थी।
दर्द अभी भी है। कभी-कभी, जब मैं कोई पुराना गाना सुनती हूँ या बारिश देखती हूँ, तो वह याद आ जाता है। लेकिन अब आँसू बहते नहीं, बल्कि मेरे अंदर समा जाते हैं, मुझे और मज़बूत बनाते हैं।
मैं अब समझती हूँ कि उसने मुझे छोड़कर, मेरी सबसे बड़ी मदद की थी। उसने मुझे सिखाया कि मैं कितनी ताक़तवर हूँ, और मेरा प्यार इतना सच्चा था कि वह सिर्फ़ एक व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि मेरे पूरे जीवन के लिए पर्याप्त है।
आज मैं अकेली हूँ, लेकिन मैं अधूरी नहीं हूँ। मैं जानती हूँ कि भविष्य में कोई आएगा या नहीं, लेकिन मैं यह जानती हूँ कि मैं ख़ुद के लिए पर्याप्त हूँ। मेरे दिल पर निशान हैं, पर अब ये निशान कमज़ोरी के नहीं, बल्कि जीत के मेडल हैं।
विक्रम ने मेरा विश्वास तोड़ा, लेकिन उसने मुझे ख़ुद पर विश्वास करना सिखाया।















