मेरा नाम अंजलि है। मेरे जीवन की कहानी किसी बड़े शहर के शोरगुल में नहीं, बल्कि एक छोटे से कस्बे की गली में शुरू हुई, जहाँ मेरा बचपन बीता और जहाँ मेरा वरुण रहता था।
वरुण मेरा पड़ोसी था, मेरी कक्षा का साथी था, और हमेशा मेरा सबसे अच्छा दोस्त रहा। हमारी दोस्ती उतनी ही पुरानी है, जितना हमारा घर। बचपन में हम साथ में साइकिल चलाना सीखते थे, पतंग उड़ाते थे, और स्कूल से लौटते समय घंटों बेवजह बातें करते थे। मैं अपनी सारी बातें वरुण को बताती थी—मेरी छोटी-छोटी खुशियाँ, मेरे डर, और मेरे सारे सपने। और वह हमेशा चुपचाप सुनता था, बस कभी-कभी मुस्कुरा देता था।
मुझे याद है, जब मैं पाँचवीं कक्षा में थी, तो मेरे पैर में चोट लग गई थी। मुझे चलने में भी मुश्किल हो रही थी। उस पूरे सप्ताह, वरुण ने मेरा बैग उठाया। वह मुझे क्लास तक छोड़कर आता और छुट्टी के बाद घर तक ले जाता। एक दिन मैंने कहा, “वरुण, तुम बहुत अच्छे हो, तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो!” उस पल उसने मेरी तरफ़ देखा—उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो मैं तब समझ नहीं पाई। उसने बस इतना कहा, “मैं तुम्हारा सिर्फ़ दोस्त नहीं हूँ, अंजलि। मैं कुछ और हूँ।” मैंने उस बात को उसकी बचकानी शरारत समझकर टाल दिया था। मुझे कहाँ पता था कि वह ‘कुछ और’ क्या था।
जैसे-जैसे हम बड़े हुए, हमारी दोस्ती और गहरी होती गई। पर मैंने महसूस किया कि वरुण धीरे-धीरे थोड़ा खामोश होने लगा है। जब भी मैं किसी लड़के के बारे में बात करती, या किसी फ़िल्मी हीरो की तारीफ़ करती, तो वह अचानक चुप हो जाता। वह मुझे कभी रोकता नहीं था, लेकिन उसके चेहरे पर एक मायूसी की हल्की-सी परछाई आ जाती थी। वह मेरी हर बात मानता था, मेरे लिए कुछ भी कर सकता था, लेकिन उसने कभी भी अपनी फीलिंग्स ज़ाहिर नहीं की।
एक बार हमारे स्कूल में ड्रामा था। मैंने वरुण से कहा कि मुझे हीरो वाला रोल बहुत पसंद है, लेकिन टीचर ने मुझे नहीं दिया। वरुण ने कुछ नहीं कहा। अगले दिन, वह टीचर से मिला और पता नहीं क्या बात की, पर टीचर ने मुझे वह रोल दे दिया। जब मैंने पूछा, “तुमने क्या किया?” तो उसने सिर्फ़ मुस्कुराकर कहा, “तुम्हारी खुशी ही मेरी खुशी है, अंजलि।”
आज मुझे एहसास होता है कि वह मेरे लिए अपनी ख़ुशी को भी दाँव पर लगा सकता था। उसने हमारे रिश्ते को हमेशा ‘दोस्ती’ का नाम दिया, क्योंकि उसे डर था कि अगर उसने अपने प्यार का इज़हार किया, तो शायद मैं उससे दूर हो जाऊँगी। और उसे यह दूरी मंज़ूर नहीं थी। मेरे साथ ‘दोस्त’ बनकर रहना, उसे मुझसे दूर रहने से ज़्यादा आसान लगा होगा। यह था उसका अनमोल इंतज़ार—एकतरफ़ा प्यार का दर्द, जिसे उसने चुपचाप अपने दिल में पाले रखा।
स्कूल खत्म हुआ और हम दोनों की दुनिया अचानक बदल गई। वरुण को इंजीनियरिंग के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा, और मैंने अपने ही शहर के एक कॉलेज में आर्ट्स में एडमिशन ले लिया। हमारे बीच अब रोज़ का मिलना नहीं था, लेकिन फ़ोन की घंटी हर रात बजती थी। वह फ़ोन वरुण का होता था।
कॉलेज का माहौल मेरे लिए नया था—आज़ादी, नए दोस्त, और एक अलग तरह का आकर्षण। मेरे दोस्तों ने मुझे डेट करने के लिए उकसाया। कई लड़कों ने मुझे प्रपोज़ किया भी। जब भी ऐसा होता, मैं तुरंत वरुण को फ़ोन करके बताती। मैं मज़ाक में कहती, “वरुण, देखो! आज मुझे किसी ने गुलाब दिया।” वह हमेशा हँसता और कहता, “तुम हो ही इतनी प्यारी, अंजलि। लेकिन सोच-समझकर फ़ैसला करना।” उसकी सलाह में कभी कोई जलन नहीं थी, बस एक सच्चे दोस्त की फ़िक्र थी।
उसने हमेशा मुझे मेरे रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। लेकिन एक बात थी जो मुझे परेशान करती थी: वरुण ने अपने पूरे कॉलेज जीवन में कोई गर्लफ्रेंड नहीं बनाई। जब उसके दोस्त उसे चिढ़ाते, तो वह बस मुस्कुरा देता। एक बार जब मैंने ज़ोर देकर पूछा, “क्या बात है, वरुण? तुम इतने हैंडसम हो, फिर भी अकेले क्यों हो?”
उसने फ़ोन पर एक गहरी साँस ली और बहुत धीरे से कहा, “अंजलि, मुझे रिश्तों में जल्दबाज़ी पसंद नहीं। मुझे जीवन में सिर्फ़ वही चाहिए, जो हमेशा मेरे साथ रहे। और जब तक वह नहीं मिल जाता, मैं किसी और पर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहता।” उस वक़्त भी मुझे लगा कि वह किसी काल्पनिक लड़की का इंतज़ार कर रहा है। मेरी नादानी इतनी थी कि मैं यह समझ ही नहीं पाई कि वह लड़की मैं ही थी, जिसका वह हर पल, हर दिन इंतज़ार कर रहा था।
कॉलेज के दौरान, एक बार मैं बहुत बीमार पड़ गई। मुझे वायरल हुआ था और मैं बिस्तर से उठ नहीं पा रही थी। वरुण को जैसे ही पता चला, वह अगले ही दिन मेरे हॉस्टल पहुँच गया। उसने अपने एग्ज़ाम बीच में छोड़ दिए थे! जब मैंने पूछा, “तुमने ऐसा क्यों किया? तुम्हारे एग्ज़ाम थे!” तो उसने बहुत ही सादगी से जवाब दिया, “एग्ज़ाम तो अगले साल फिर दे दूँगा, अंजलि। लेकिन अगर तुम्हें कुछ हो जाता, तो मैं क्या करता?”
वह मेरे लिए खाना बनाता, मेरी दवाइयाँ समय पर देता, और जब मैं ठीक हो गई, तब वह वापस गया। जाते समय उसने सिर्फ़ मेरे माथे पर हाथ रखा और कहा, “अपना ख़याल रखना, यार। मैं तुम्हारे बिना… ठीक नहीं रह सकता।”
उस दिन, उसकी आँखों में जो चिंता और जो प्यार था, वह दोस्ती से कहीं ज़्यादा गहरा था। उसका यह समर्पण… यह सबूत था कि उसका प्यार कितना अटूट और सच्चा था, जिसे मैं अब तक देख नहीं पाई थी।
कॉलेज ख़त्म होने के बाद, मैं और वरुण दोनों अपने शहर वापस आ गए। हम दोनों ने मिलकर सरकारी नौकरी के लिए तैयारी शुरू कर दी। अब हम फिर से रोज़ मिलने लगे थे, लेकिन अब हमारा रिश्ता पहले जैसा चंचल नहीं रहा। अब हमारे बीच एक नई खामोशी थी—एक ऐसी खामोशी, जो सिर्फ़ वरुण के मन में नहीं थी, बल्कि मेरे दिल में भी कुछ हलचल पैदा कर रही थी।
मैं अक्सर खुद से पूछती थी कि वरुण इतना ख़ास क्यों है? मैं किसी और लड़के के बारे में क्यों नहीं सोच सकती? उसका चार साल तक किसी को डेट न करना, मेरा बीमार होने पर एग्ज़ाम छोड़कर चले आना… ये सब अब दोस्ती की परिभाषा से बाहर लगने लगा था। मेरी आँखें अब उस सच्चाई को देखने लगी थीं, जिसे मेरा बचपन का दिमाग़ अब तक नज़रअंदाज़ कर रहा था।
एक शाम, हम पढ़ाई के बाद देर तक छत पर बैठे थे। चाँदनी रात थी और वरुण अचानक बहुत बेचैन लग रहा था। वह कुछ कहना चाहता था, लेकिन उसके शब्द गले में अटक रहे थे। मैंने ही हिम्मत करके पूछा, “क्या हुआ, वरुण? तुम आजकल इतने चुप क्यों रहते हो?”
उसने अपना सिर उठाया। उसकी आँखें लाल थीं। उसने अपने अंदर सालों से दबाए हुए जज़्बात को एक ही साँस में बाहर निकाल दिया।
“अंजलि,” उसकी आवाज़ काँप रही थी, “मैं जानता हूँ कि तुम मुझे सिर्फ़ अपना दोस्त समझती हो… और मैं हमेशा इस दोस्ती की इज़्ज़त की है। मैंने कभी तुम्हें खोने के डर से अपनी फीलिंग्स ज़ाहिर नहीं की। लेकिन अब… अब मैं और इंतज़ार नहीं कर सकता।”
वह मेरे सामने घुटनों के बल बैठ गया। यह किसी फ़िल्मी स्टाइल का प्रपोज़ल नहीं था, यह उसके दिल का शुद्ध दर्द था। उसने अपने काँपते हाथों से एक छोटी-सी चेन निकाली और कहा, “मैं तुम्हें बचपन से प्यार करता हूँ, अंजलि। जब हम लड़े, तब भी। जब हम दूर थे, तब भी। और अगर तुम किसी और से शादी करोगी… तो मैं तुम्हें देख नहीं पाऊँगा। यह मेरे लिए मुमकिन नहीं होगा। मैं… मैं सच में मर जाऊँगा।”
उसके आखिरी शब्दों ने मेरे दिल में तूफ़ान खड़ा कर दिया। ‘मर जाऊँगा’—यह कोई धमकी नहीं थी। यह एक ऐसे इंसान का दर्द था जिसने अपने पूरे जीवन का प्यार एक तरफ़ा रिश्ते में दे दिया था। उसकी यह बात सुनकर मेरा पूरा शरीर काँप गया।
उस रात मैं तुरंत कुछ नहीं बोल पाई। मैं बस उसके समर्पण और त्याग को देखकर हिल गई थी। मैं घर आ गई, लेकिन मेरे दिमाग़ में सिर्फ़ उसका चेहरा घूम रहा था। मुझे लगा जैसे मैंने उसे कितना ज़्यादा दर्द दिया है, सिर्फ़ अपनी नादानी की वजह से। मैंने उसकी दोस्ती को तो स्वीकार किया, लेकिन उसके प्रेम को अनदेखा कर दिया।
मुझे उस पल समझ आया कि मेरा जीवन वरुण के बिना अधूरा है। मेरा हर सपना, मेरी हर ख़ुशी, कहीं न कहीं उससे जुड़ी हुई है। वह सिर्फ़ मेरा दोस्त नहीं था, वह मेरे जीवन का आधार था। मुझे अब अपने दिल की बात सुननी थी, उस रिश्ते की सच्चाई जाननी थी जिसे मैं दोस्ती की ओट में छिपाए बैठी थी।
अगले कुछ दिन मेरी ज़िन्दगी के सबसे मुश्किल दिन थे। मैं न वरुण से मिली, न किसी से बात की। मैं बस अपने कमरे में बैठी, अपनी पूरी ज़िन्दगी को फिर से जी रही थी। मैं याद कर रही थी कि जब भी मैं मुश्किल में होती थी, मैंने सबसे पहले किसे पुकारा? वरुण को। जब भी मैं ख़ुश होती थी, किसे बताना चाहती थी? वरुण को।
मुझे याद आया कि जब कॉलेज में मेरे साथ वाला हर लड़का मुझे ‘डेट’ पर ले जाना चाहता था, तब भी मैं हमेशा वरुण को ही सबसे ज़्यादा अहमियत देती थी।
मुझे अब साफ़ समझ आ गया था कि मेरा दिल हमेशा से वरुण के लिए धड़कता रहा है, लेकिन मैंने उसे ‘दोस्ती’ नाम की चादर से ढँक रखा था। मैं उसके अनमोल प्यार को सिर्फ़ इसलिए नहीं देख पाई क्योंकि वह बहुत साफ़ था, बहुत सरल था, और हमेशा मेरे पास मौजूद था। मुझे एहसास हुआ कि पवन ने अपनी बात में कितनी बड़ी सच्चाई छिपाई थी—उसने अपनी पूरी जवानी मेरे इंतज़ार में बिता दी थी। मेरा प्यार, मेरी खुशी ही उसका सबसे बड़ा उद्देश्य था।
मैंने तय किया कि अब और इंतज़ार नहीं। मैंने उसी रात वरुण को फ़ोन किया और कहा कि मैं उसी जगह मिलना चाहती हूँ, जहाँ उसने मुझे प्रपोज़ किया था—हमारी छत पर।
जब मैं उससे मिली, तो वरुण का चेहरा उदास था, लेकिन उसने अपने दर्द को छुपाने की कोशिश की। वह शायद मान चुका था कि मैं उसे ‘ना’ कहने वाली हूँ।
मैंने कोई लंबी बात नहीं की। मैं सीधे उसके पास गई, उसके काँपते हाथ को पकड़ा, और पहली बार, मैंने उसे अपनी आँखें उठाकर देखा।
मैंने अपनी आवाज़ में पूरा सच भरकर कहा, “वरुण, मुझे माफ़ करना। मैंने तुम्हें बहुत दर्द दिया। मैं इतनी नादान थी कि मैं इस अनमोल प्यार को दोस्ती समझती रही। मैं तुम्हें कभी मरते हुए नहीं देख सकती। और अब मुझे एहसास हो गया है… मेरा दिल भी हमेशा से तुम्हारा ही था।”
मेरे शब्द सुनकर उसकी आँखों में पहले हैरानी आई, फिर एक अटूट सुकून। उसकी आँखों में सालों का इंतज़ार और दर्द था, जो अब ख़ुशी के आँसुओं में बदल गया। उसने मुझे कसकर गले लगा लिया। उस पल, मुझे लगा जैसे मैं सिर्फ़ अपने दोस्त को नहीं, बल्कि अपने जीवन के खोए हुए हिस्से को वापस पा रही हूँ।
हमारा प्यार किसी रोमांटिक कहानी जैसा नहीं था, जहाँ अचानक से सब कुछ हो जाता है। यह धीरे-धीरे परवान चढ़ा था—तकरार से शुरू होकर, अनजाने प्यार से होकर, और फिर अटूट समर्पण तक पहुँचा था।
इसके बाद सब कुछ बहुत तेज़ी से हुआ। हमारे परिवार वाले हमेशा से चाहते थे कि हम दोनों एक हो जाएँ। इसलिए, बिना किसी ड्रामा के, हमारी शादी तय हो गई। उस दिन, जब मैं दुल्हन बनकर वरुण के सामने खड़ी थी, मैंने महसूस किया कि मुझे सिर्फ़ एक पति नहीं मिला, बल्कि मेरा बचपन का साथी, मेरा सबसे बड़ा रक्षक, और मेरा सबसे सच्चा प्यार मिला है।
हमारी शादी एक भव्य उत्सव थी, लेकिन मेरे लिए यह उत्सव से कहीं ज़्यादा, एक वादा था—वरुण के साथ हमेशा रहने का, जिसे मैंने सालों पहले दोस्ती के नाम पर अनजाने में ही सही, लेकिन दे दिया था।
शादी के बाद की ज़िंदगी, जैसा कि लोग कहते हैं, वैसी नीरस नहीं हुई। इसका कारण साफ़ था: वरुण मुझे एक पत्नी से ज़्यादा, एक दोस्त की तरह प्यार करते हैं।
मैंने अक्सर लोगों को कहते सुना है कि शादी के बाद रिश्ते धीरे-धीरे खराब होने लगते हैं। रोमांस खत्म हो जाता है, और सिर्फ़ ज़िम्मेदारियाँ और अपेक्षाएँ बचती हैं। लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि वरुण का प्यार कभी सिर्फ़ ‘पति’ वाला नहीं रहा। वह मुझे बचपन से जानता है। वह जानता है कि मेरे चुप रहने का मतलब क्या है, मेरे गुस्से के पीछे क्या छिपा है, और मेरे कौन से सपने अभी भी अधूरे हैं।
जब कभी हम किसी बात पर असहमत होते हैं, तो वह पहले पति की तरह अधिकार नहीं दिखाता, बल्कि दोस्त की तरह पहले मेरी बात सुनता है। वह कहता है, “रिया, यह पति-पत्नी का झगड़ा नहीं है, यह दो दोस्तों के बीच की बहस है। चलो, पहले दोनों सही तरीक़े से बात करते हैं।” इस रवैये से हर बड़ा झगड़ा भी मिनटों में सुलझ जाता है।
वरुण का प्यार हमेशा मेरे प्रति एक समर्पण रहा है। वह आज भी मेरे लिए उतना ही त्याग करता है, जितना उसने कॉलेज के एग्ज़ाम छोड़कर मेरी देखभाल करते समय किया था। वह सिर्फ़ मेरे साथ रहता नहीं है; वह मेरे जीवन को जीता है।
मुझे अब पूरी तरह समझ आ गया है कि दिक्कत शादी की नहीं होती, दिक्कत तो शादी के बाद रिश्ते को निभाने की होती है। ज़्यादातर लोग शादी को मंज़िल मान लेते हैं, जबकि यह एक लंबी यात्रा की बस शुरुआत होती है। हमारी नींव बचपन की दोस्ती, सालों के इंतज़ार, और अटूट विश्वास पर टिकी थी। यह नींव इतनी मज़बूत है कि इस पर ज़िम्मेदारियों का कितना भी बोझ डाल दिया जाए, यह हिल नहीं सकती।
आज, जब मैं वरुण के साथ बैठी होती हूँ, तो मुझे लगता है कि मैं अपनी ज़िंदगी के सबसे सुरक्षित और सबसे ख़ुशहाल दौर में हूँ। मेरा बचपन का प्यार अब मेरा हमसफ़र है—वह मेरा सबसे अच्छा दोस्त है, जो कभी नहीं चाहता कि मैं बदलूँ। वह मुझे मेरी हर नादानी, हर ग़लती के साथ स्वीकार करता है, क्योंकि उसने मुझे सालों तक सिर्फ़ दूर से चाहा है।
और यही प्यार… एक पत्नी को मिला सबसे बड़ा तोहफ़ा है।















