मेरा नाम कियारा है।
और यह कहानी उस लड़के की है
जिसने मुझे सिर्फ प्यार नहीं किया…
बल्कि हर मुश्किल में मेरे साथ खड़ा रहा।
हमारी मुलाकात किसी फिल्मी सीन जैसी नहीं थी।
न बारिश,
न स्लो-मोशन,
न कोई दिल वाली धुन।
बस एक लाइब्रेरी,
दो किताबें
और एक ही शेल्फ की तरफ बढ़ते हुए
हम दोनों के हाथ टकरा गए।
वो मुस्कुराया—
“ले लो… आपको पहले चाहिए होगा।”
मैंने भी हल्की सी मुस्कान दी।
नाम पूछा।
वो बोला—
“अर्णव।”
उसका नाम जितना सादा था,
उसका स्वभाव उससे भी ज्यादा सादा था।
धीरे-धीरे हम लाइब्रेरी में मिलने लगे।
पहले पढ़ाई की बातें होती थीं,
फिर जिंदगी की,
फिर पसंद–नापसंद,
और पता ही नहीं चला
कब वो मेरी हर बात का हिस्सा बन गया।
पहला एहसास — जब उसने मेरी आँखों का दर्द पढ़ लिया
एक दिन मैं लाइब्रेरी में रोते हुए बैठी थी।
घर में कुछ समस्याएँ थीं,
दिमाग काम नहीं कर रहा था,
और दिल बहुत भारी था।
अर्णव आया,
मेरे बगल में चुपचाप बैठ गया
और बोला—
“कियारा, कुछ लोग बाहर से जितने मजबूत दिखते हैं,
अंदर उतने ही टूटे होते हैं…
तुम भी वैसी ही हो।”
मैं उसकी बात सुनकर खुद को रोक नहीं सकी।
मैं फूट-फूटकर रो पड़ी।
उसने मेरा हाथ पकड़ा—
बहुत हल्के से,
बहुत सम्मान से।
उस दिन मुझे पहली बार लगा…
ये लड़का अलग है।
ये बस साथ नहीं देता—
दिल संभाल लेता है।
धीरे-धीरे प्यार पनपने लगा… पर बिना कहे
हम रोज़ मिलने लगे।
लाइब्रेरी, कैंटीन, कॉलेज की सीढ़ियाँ…
हर जगह हम साथ होने लगे।
पर वो कभी “I love you” नहीं बोला।
मैं भी नहीं बोली।
क्योंकि हमारा प्यार
शब्दों में कम,
खामोशियों में ज़्यादा लिखा जा रहा था।
एक शाम,
कैंपस की पुरानी छत पर
हम सूरज ढलता देख रहे थे।
मैंने पूछा—
“अर्णव, क्या तुम किसी से प्यार करते हो?”
वो धीरे से मुस्कुराया—
मेरी आँखों में गहराई से देखा
और बोला—
“हाँ… करता हूँ।”
मेरा दिल धक से रह गया।
मैंने नज़र झुका ली।
कुछ बोल नहीं पाई।
तभी उसने बहुत धीरे से कहा—
“पर हिम्मत नहीं होता बताने का…”
मैंने हिम्मत करके पूछा—
“क्यों?”
उसने जवाब दिया—
“क्योंकि मुझे डर लगता है…
मैं हार जाऊँगा तो भी चल जाएगा,
लेकिन उसे खोना नहीं चाहता।”
मेरी सांस रुक गई।
मैंने धीरे से पूछा—
“कौन है वो?”
अर्णव ने मेरी तरफ देखा,
आँखें थोड़ी भीगीं…
और सिर्फ इतना कहा—
“तुम।”
मेरी दुनिया वहीं थम गई।
दिल की सारी धड़कनें
एक पल को रुक गईं।
उसने मेरे आँखों से गिरे आँसू पोंछे और कहा—
“कियारा…
मैं हार सकता हूँ,
ज़िंदगी से, हालात से, दुनिया से…
लेकिन तुम्हें नहीं छोड़ सकता।”
उस पलों में मुझे एहसास हुआ—
सच्चा प्यार आवाज़ नहीं करता…
दिल को सीधे छू जाता है।
उस शाम के बाद,
जब अर्णव ने कहा था—
“मैं हार सकता हूँ, लेकिन तुम्हें नहीं छोड़ सकता।”
मेरी दुनिया बदल गई थी।
मेरे अंदर एक अजीब-सी शांति…
और बहुत गहरी सुरक्षा की भावना आ गई थी।
अब हम एक-दूसरे से सिर्फ बात नहीं करते थे,
हम एक-दूसरे की आदत बन गए थे।
लेकिन असली प्यार वहीं से शुरू होता है
जहाँ मुश्किलें शुरू होती हैं।
और हमारी मुश्किलें जल्दी ही आने वाली थीं।
😥 घर की परेशानियाँ… और अर्णव का पहला इम्तिहान
मेरे घर में हालात बहुत खराब हो गए थे।
पापा की नौकरी चली गई थी।
माँ बीमार रहने लगीं।
और घर का माहौल
दिन-ब-दिन तनाव से भरता जा रहा था।
मैं रोने लगी,
चीजें तोड़ने लगी,
और खुद को पूरी तरह अकेला महसूस करने लगी।
एक दिन मैं अर्णव से छुपकर बाहर रो रही थी।
ठंडी हवा चल रही थी
और मेरी आँखें पूरी तरह भीग चुकी थीं।
अर्णव आया,
बिना कुछ पूछे
मेरे पास बैठ गया।
मैंने धीरे से कहा—
“अर्णव… मैं टूट गई हूँ।
कुछ समझ नहीं आता…
मतलब… क्यों मेरे साथ?”
उसने मेरी तरफ देखा
और मेरी हथेलियाँ पकड़कर बोला—
“कियारा…
तुम टूट नहीं रही हो,
तुम बस थक गई हो।
और थकान में इंसान को बस एक कंधा चाहिए…
मैं हूँ ना।”
उसके शब्द सीधे दिल में उतर गए।
उसने कोई बड़ा वादा नहीं किया,
कोई फिल्मी लाइन नहीं बोली,
बस शांत रहकर मेरा दर्द बांटा।
यही सच्चा प्यार होता है —
जब इंसान आपके दर्द को महसूस करे,
सिर्फ देखकर नहीं…
जीकर।
💔 मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी घटना… और उसकी सबसे बड़ी परीक्षा
एक रात
माँ को अचानक तेज़ दर्द उठा।
हॉस्पिटल ले जाना पड़ा।
पैसे कम थे,
सिचुएशन खराब थी।
मैं हिम्मत नहीं कर पा रही थी।
अर्णव को कॉल किया।
उसने कॉल उठाते ही कहा—
“कहाँ हो? मैं आ रहा हूँ।”
वो 20 मिनट में हॉस्पिटल पहुँच गया।
मेरे पास बैठा,
मेरा हाथ पकड़ा,
और बोला—
“तुम बस माँ के पास रहो,
बाकी सब मैं देख लूँगा।”
उसने बिल भरा,
दवाइयाँ लीं,
डॉक्टर से बात की—
सब।
मैं बस उसे देखती रह गई।
उस रात
मैंने पहली बार महसूस किया—
“ये लड़का सिर्फ मेरा प्यार नहीं…
मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी ताकत है।”
❤️ धीरे-धीरे हम बातें कम, और एहसास ज़्यादा समझने लगे
अब हमें एक-दूसरे से
“I love you”
कहने की ज़रूरत नहीं होती थी।
हम बस—
-
एक नज़र से पता कर लेते थे कि दूसरा ठीक है या नहीं
-
एक खामोशी से उसकी परेशानी समझ लेते थे
-
एक छूने से सुकून दे देते थे
एक दिन मैंने उससे पूछा—
“अर्णव… तुम्हें कभी डर नहीं लगा?
इतनी परेशानियों को संभालने में?”
उसने हल्की मुस्कान दी—
“डरता हूँ…
पर तुम्हारे बिना जीने से ज्यादा नहीं।”
उसकी एक लाइन ने
मेरी दुनिया फिर से रोशन कर दी।
**💥 पर प्यार आसान कहाँ होता है…?
अगली चुनौती ने हमारी नींव हिला दी**
जब भी जिंदगी लोगों को करीब लाती है,
किस्मत उन्हें टेस्ट करना नहीं भूलती।
अब हमारी जिंदगी में
सबसे बड़ा ट्विस्ट आने वाला था—
मेरे घर वालों को पता चल गया…
कि मैं किसी से प्यार करती हूँ।
और उनका रिएक्शन
मेरे दिल को चीर देने वाला था…
मेरी और अर्णव की लाइफ
एक-दूसरे पर टिकी हुई थी।
वो मेरा सहारा था,
मैं उसकी खुशी।
पर प्यार सिर्फ दो दिलों की चीज़ नहीं होता,
कभी-कभी पूरी दुनिया उस प्यार के सामने खड़ी हो जाती है।
और मेरे साथ भी वही हुआ।
💥 मेरे घरवालों को हमारे रिश्ते के बारे में पता चला
एक दिन
मैं हॉस्पिटल में माँ के पास बैठी थी।
माँ की हालत थोड़ी ठीक हुई,
तो मैंने अर्णव को मेसेज किया—
“आज आना मत… पापा आसपास ही हैं।”
लेकिन किस्मत का टाइमिंग कभी सही नहीं होता।
उस शाम पापा ने
मेरे फोन पर आए अर्णव के मेसेज देख लिए।
मेसेज था—
“मैं बाहर हूँ… अगर ज़रूरत हो तो बुला लेना।”
पापा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
उन्होंने फोन जमीन पर फेंक दिया और चिल्लाए—
“कियारा! ये कौन लड़का है?
हमारी हालत देख रही हो?
और तुम मोहब्बत में पड़ी हो?”
मैं डर से काँप गई।
आवाज़ गले में अटक गई।
मैंने धीरे से कहा—
“पापा… वो बुरा नहीं है।”
उन्होंने तड़पते हुए चिल्लाया—
“लड़कियों का दिमाग ऐसे ही फिराया जाता है!
घर की हालत देखी है?
ये वक्त प्यार का है?”
मैं रोने लगी।
लेकिन पापा की आँखों में सिर्फ गुस्सा था।
माँ भी जाग गईं।
उन्होंने भी कहा—
“बेटा… दुनिया ऐसे रिश्ते नहीं निभाती।”
उस रात
मेरे घर की दीवारें दुःख और चिल्लाहट से भर गईं।
और सबसे दर्दनाक बात—
मैं चुप थी।
कुछ कह नहीं पा रही थी।
😔 मुझे अर्णव से दूर रहने के लिए कहा गया
अगली सुबह पापा ने साफ़ कह दिया—
“अब उस लड़के से बात नहीं होगी।
उससे कोई मतलब नहीं रखना।
वो तुम्हारी जिंदगी बर्बाद कर देगा।”
मैंने बहुत कोशिश की समझाने की—
“पापा, वो अच्छा लड़का है।”
“उसने हमारे मुश्किल वक्त में साथ दिया।”
पर कोई सुनने को तैयार नहीं था।
घर की मजबूरियाँ,
हालात,
समाज—
सब मेरे खिलाफ खड़े थे।
पापा ने आखिरी शब्द कहे—
“अगर तुम उससे बात करोगी…
तो ये घर छोड़ना पड़ेगा।”
मेरे दिल की सांसें रुक सी गईं।
मैं टूट गई।
💔 उस रात मैंने खुद को कमरे में बंद कर लिया
और अर्णव को मैसेज किया—
“कृपया आज मत आना।
मेरे घर में बहुत प्रॉब्लम हो रही है।”
उसने झट से जवाब दिया—
“क्या हुआ?
मैं आ रहा हूँ।”
मैं घबरा गई।
जल्दी से लिखा—
“नहीं! प्लीज़ मत आओ।
सब और बिगड़ जाएगा।”
उसने लिखा—
“कियारा…
क्या तुम्हारे घरवालों को पता चल गया?”
मेरी आँखे भर आईं—
“हाँ…”
वो कुछ देर चुप रहा।
फिर अचानक लिखा—
“मैं कल उनसे बात करने आऊँगा।
मैं किसी से डरने वाला नहीं हूँ।”
मैं डर गई।
मैंने लिखा—
“नहीं अर्णव! प्लीज!!
पापा बहुत गुस्से में हैं।”
उसने अंतिम मैसेज भेजा—
“कियारा…
अगर मैं तुम्हें सच में प्यार करता हूँ,
तो मुझे तुम्हारे परिवार का सामना करना ही पड़ेगा।
जो होना है, होने दो—
लेकिन मैं तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूँगा।”
मेरा दिल धड़कने लगा।
मैं कांप रही थी।
अगली सुबह
वो सच में मेरे घर आया…
और जो हुआ,
वो हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा तूफान था।
सुबह का समय था।
घर में अजीब सी खामोशी थी।
माँ अस्पताल से वापस आई थीं,
पापा चाय लेकर बाहर बैठे थे,
और मेरे दिल की धड़कनें
किसी तूफान की तरह चल रही थीं।
तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई।
मैं समझ गई…
वो आ गया है।
मेरे हाथ काँपने लगे।
पापा ने दरवाज़ा खोला।
अर्णव सामने खड़ा था—
साफ शर्ट, शांत चेहरा,
लेकिन आँखों में अजीब सा साहस।
पापा ने गुस्से से पूछा—
“कौन?”
अर्णव ने धीरे से कहा—
“सर… मैं अर्णव।
कियारा का दोस्त।”
पापा चीख पड़े—
“हमें तुम्हारे जैसे दोस्तों की जरूरत नहीं!
निकलों यहाँ से!”
मैं अंदर से फूट पड़ी।
भागकर बाहर आई—
“पापा प्लीज… उसकी बात तो सुनिए!”
पापा ने मुझे धक्का देकर पीछे किया—
“तुम चुप रहो! ये लड़का तुम्हें बर्बाद करेगा!”
अर्णव ने एक लंबे सांस के साथ कहा—
“सर, मैं आपकी बेटी को बर्बाद करने नहीं आया…
मैं उसकी जिंदगी सुधारने आया हूँ।”
ये सुनकर पापा उबल पड़े—
“बड़े आए सुधारने वाले!
जिंदगी खुद की बनी नहीं और मेरी बेटी को क्या चलाओगे?”
अर्णव ने सिर झुकाया,
पर आवाज मजबूत थी—
“सर… मैं गरीब हूँ,
पर गलत नहीं।
कियारा के लिए मैं अपनी जान भी दे दूँ…
लेकिन उससे धोखा नहीं करूँगा।”
पापा ने ताना मारा—
“जान दे दोगे लेकिन उसे खिला-पिला नहीं पाओगे!
प्यार पेट नहीं भरता!”
उस पल मुझे लगा
अब सब खत्म हो जाएगा…
लेकिन अर्णव एक कदम आगे बढ़ा,
और बोला—
“सही कहते हैं सर…
प्यार पेट नहीं भरता।
इसलिए मैं नौकरी भी कर रहा हूँ,
और पढ़ाई भी।
आपकी बेटी के लिए मेहनत करना मेरे लिए बोझ नहीं…
मेरा गौरव है।”
पापा उसका चेहरा देखते रह गए।
😢 फिर पापा ने वो सवाल पूछा जो सबसे कठिन था…
पापा की आवाज धीमी हुई—
पर दर्द भरी—
“अगर मेरी बेटी तुम्हारे साथ आई,
तो उसका भविष्य क्या होगा?”
अर्णव ने नजरें उठाईं—
“सर… मैं अमीर नहीं हूँ।
लेकिन मेहनत करता हूँ।
कियारा चाहे मेरा साथ दे या ना दे…
मैं कभी उसे बोझ नहीं बनने दूँगा।
ना उसके सपने रोकूँगा।
ना उसकी पढ़ाई।”
उसका हर शब्द
सीधे पापा के दिल पर लग रहा था।
मैं बस उसे देखते हुए रो रही थी।
💔 पापा की आँखें भी भर आईं… पर गुस्सा अब भी जिंदा था
माँ दरवाज़े पर खड़ी थीं।
उनकी भी आँखों में आँसू थे।
पापा ने भारी आवाज में कहा—
“तुम्हारी बातों में ईमानदारी है…
लेकिन मेरी बेटी की जिंदगी खेल नहीं है।”
अर्णव ने गहरी सांस ली और बोला—
“सर…
खेल मैं भी नहीं खेल रहा।
कियारा मेरे लिए
शौक, समय, क्रश या आदत नहीं है।
वो मेरी…
ज़िम्मेदारी है।”
उसने मेरी तरफ देखा—
और मेरी आँखें फिर से भर गईं।
अर्णव आगे बोला—
“मैं हार सकता हूँ सर…
हर लड़ाई में, हालात से, दुनिया से…
लेकिन आपकी बेटी को नहीं छोड़ सकता।”
घर की हवा भारी हो गई।
कमरा खामोश हो गया।
बस मेरी सिसकियाँ सुनाई दे रही थीं।
पापा चुप हो गए—
पहली बार।
उन्होंने सिर फेर लिया और बस इतना कहा—
“जाओ… हमें सोचने दो।”
अर्णव ने मेरे माथे पर एक शांत नज़र डाली,
आँखों से समझाया—
“रो मत… मैं यहीं हूँ।”
और वो चला गया।
उसके जाने के बाद घर में तूफान और बड़ा था
माँ बोलीं—
“लड़का अच्छा है… पर बहुत संघर्ष करना पड़ेगा।”
पापा बस चुप बैठे रहे।
शायद अंदर से टूटे हुए…
शायद सोच में पड़े हुए।
मैं कमरे में जाकर बैठ गई
और आँसू नहीं रुक रहे थे।
उस दिन मुझे एहसास हुआ—
सच्चा प्यार लड़ना नहीं चाहता…
लेकिन ज़रूर लड़ता है।
अर्णव उस दिन चला गया…
लेकिन उसके शब्द घर की दीवारों में गूंजते रह गए—
“मैं हार सकता हूँ… लेकिन आपकी बेटी को नहीं छोड़ सकता।”
उसके जाने के बाद
घर में खामोशी टूटने का नाम नहीं ले रही थी।
पापा बार-बार चाय पीते,
कभी बाहर जाकर खिड़की से देखते,
फिर वापस आकर चुप बैठ जाते।
माँ धीमे से बोलीं—
“गलत लड़का नहीं है…
लेकिन फैसला तुम्हारा है।”
मैंने पापा की तरफ देखा—
उनकी आँखों में डर, जिम्मेदारी और प्यार…
सब कुछ दिख रहा था।
🌙 उसी रात… पापा मेरे कमरे में आए
उनकी आवाज भारी थी—
“कियारा… तुम उसे इतना क्यों चाहती हो?”
मेरे अंदर का डर टूट गया,
और सच खुद-ब-खुद निकल गया—
“क्योंकि पापा,
वो सिर्फ मेरा हाथ नहीं पकड़ता…
मेरी पूरी जिंदगी संभालता है।”
मेरी आँखें भर आईं।
मैंने आगे कहा—
“उसने मुश्किल वक्त में हमारा साथ दिया…
बिन माँगे पैसा दिया,
हॉस्पिटल में रातें काटीं,
मेरी पढ़ाई नहीं रुकने दी…
जबकि उसे कोई ज़रूरत नहीं थी।”
पापा चुपचाप सुनते रहे।
फिर मैंने आखिरी बात कही—
“पापा…
मैं उससे शादी इसलिए नहीं करना चाहती
क्योंकि वो मेरा प्यार है…
बल्कि इसलिए कि वो एक अच्छा इंसान है।”
पापा की आँखों में नमकीन चमक थी।
उन्होंने कुछ नहीं कहा
बस कमरे से बाहर चले गए।
**💥 अगली सुबह…
दरवाज़े पर वही आवाज़ आई जिसने सब बदल दिया**
“कियारा… अर्णव आया है।”
मेरी सांस रुक गई।
मैं भागकर बाहर आई।
अर्णव दरवाज़े पर खड़ा था—
काफी थका हुआ,
पर आँखों में वही हिम्मत।
पापा सामने आए।
अर्णव घबरा गया…
मैं तो कांप ही गई थी।
पापा ने धीरे से कहा—
“जो लड़का मुसीबत में पीछे नहीं हटता…
वो जिंदगी में भी पीछे नहीं हटेगा।”
अर्णव ने उनकी ओर देखा—
थोड़ी उम्मीद,
थोड़ा डर।
पापा आगे बोले—
“अगर तुम दोनों एक-दूसरे के साथ रहना चाहते हो…
तो मेरी तरफ से कोई रोक नहीं।”
मेरी आँखें भर आईं।
अर्णव के होंठ कांपे…
और उसने पापा के पैर पकड़ लिए—
“थैंक यू, सर… मैं आपकी बेटी को कभी दुख नहीं दूँगा।”
पापा ने उसे उठाया,
कंधे पर हाथ रखा,
और कहा—
“दुख तो आएँगे बेटा…
बस साथ मत छोड़ना।”
अर्णव ने तुरंत कहा—
“सर… मैं हार सकता हूँ,
लेकिन कियारा को कभी नहीं छोड़ूँगा।”
उस पल
ऐसा लगा
जैसे पूरी दुनिया थम गई हो।
**🌸 कुछ महीने बाद…
सबकुछ खूबसूरत हो गया**
माँ धीरे-धीरे ठीक होने लगीं।
पापा ने अर्णव को अपनाना शुरू कर दिया।
हम दोनों ने पढ़ाई पूरी की।
अर्णव ने छोटी-सी नौकरी शुरू की,
और मैं भी।
हम साथ-साथ बढ़ते गए,
बिना किसी शोर–शराबे के,
बिना किसी दिखावे के—
सिर्फ प्यार और भरोसे के सहारे।
**💍 और फिर… वो दिन आया
जिसका हम दोनों ने सपना देखा था**
हमारी शादी।
सिंपल, शांत, खूबसूरत।
परिवारीजनों के आशीर्वाद के साथ—
बिना डर, बिना छुपाए।
फेरे लेते समय
अर्णव ने मेरे कान में कहा—
“कियारा…
मैं कई लड़ाइयाँ हार जाऊँगा…
लेकिन तुम्हें कभी नहीं।”
मेरी आँखों में आँसू आ गए।
मैं मुस्कुराकर बोली—
“और मैं भी…
कभी तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूँगी।”
✨ सच्चे प्यार की यही खूबी है
वो शोर नहीं करता,
पर तूफानों से लड़ता है।
वो वादों से नहीं चलता,
बल्कि निभाने से चलता है।
और जब एक इंसान कहे—
“मैं हार सकता हूँ…
लेकिन तुम्हें नहीं छोड़ सकता…”
तो समझ लीजिए—
वो प्यार नहीं,
वो जिंदगी बन चुका है।















