मैं कभी नहीं समझ पाई कि मेरी जिंदगी में कौन-सा दिन किस मोड़ पर जाकर बदल जाएगा।
मैं बस अपनी पढ़ाई और घर की चिंताओं में उलझी रहती थी—कॉलेज, प्रोजेक्ट, फीस, और फिर घर के काम। मुझे कभी लगता ही नहीं था कि कोई मेरी तरफ ध्यान ही देता होगा।
लेकिन कुछ हफ़्तों से एक अजीब-सी बात मेरी नजरों में बार-बार आ रही थी।
मैं जहाँ भी जाती… वो चेहरा कहीं न कहीं दिख जाता।
वह आदमी उम्र में बड़ा था—करीब 38–40 साल का, नाम था शादाब खान।
पहली बार मैंने उसे तब देखा जब मेरी फाइल से नोट्स गिर पड़े थे।
मैं झुंझलाकर उन्हें उठा रही थी कि अचानक एक हाथ आगे बढ़ा और उसने मेरी किताबें उठाकर मेरे हवाले कर दीं।
वह बोला,
“पानी गिरेगा तो पेज खराब हो जाएंगे। संभालकर, काव्या।”
मैं चौंक गई।
उसे मेरा नाम कैसे पता?
पर मैंने सोचा—शायद मेरी आईडी कार्ड पर लिखा होगा, कोई बड़ी बात नहीं।
उसकी मुस्कान बहुत मुलायम सी थी।
इतनी कि मैं उसी पल थोड़ा सहज हो गई।
मैंने “थैंक्यू” कहा और चली गई।
पर अगले ही दिन…
कैंटीन के बाहर,
वही आदमी फिर खड़ा था।
इस बार उसने पूछा,
“आज क्लास जल्दी खत्म?”
मैंने कहा, “हाँ, बस।”
उसे देखकर मुझे अजीब लगा,
पर मैं बेवजह सोचने लगी कि शायद यह इत्तेफाक होगा।
कॉलेज के आसपास रोज़ हजार लोग आते जाते हैं—वह भी उनमें से एक होगा।
पर मेरी यह सोच ज्यादा दिन नहीं रही।
तीसरे दिन बारिश अचानक बहुत तेज़ हो गई।
मैं बस स्टैंड पर भीग रही थी,
हाथ में फाइल,
और मन में डर कि नोट्स खराब ना हो जाएँ।
तभी मेरे सामने उसकी कार रुकी।
वह खिड़की खोलकर बोला,
“काव्या… बैठ जाओ। अकेले भीगना ठीक नहीं। छोड़ दूँ क्या?”
मैंने तुरंत मना किया—
“नहीं, मैं निकल जाऊँगी।”
वह शांत आवाज़ में बोला,
“बहन समझकर बोल रहा हूँ।
आज रास्ता ठीक नहीं, बैठो।”
“बहन”—ये शब्द मुझे सुरक्षित लगे।
मैं गाड़ी में बैठ गई।
पूरे रास्ते उसने कोई भी ऐसी बात नहीं की
जो मुझे असहज करे।
मैंने उसे बस एक अच्छा इंसान माना।
लेकिन धीरे-धीरे
वह जहाँ मैं होती…
उसी समय वहीं नजर आ जाता।
कभी लाइब्रेरी के पास,
कभी कैंटीन की लाइन में,
कभी वहीं बस स्टॉप पर,
कभी पार्किंग में गाड़ी साफ करते हुए,
कभी कॉलेज गेट पर खड़ा।
और हर बार
ऐसे दिखता जैसे सिर्फ संयोग हो।
पर अब मैं सोचती हूँ—
संयोग इतने लगातार कैसे हो सकते थे?
कभी वह कहता,
“थके लग रही हो, पानी ले लो।”
कभी,
“फोन चार्ज कर लो अगर जरूरत हो।”
कभी,
“यह किताब भारी है, मैं पकड़ देता हूँ।”
और मैं मानती जा रही थी
कि वह बस मदद कर रहा है।
मैंने कभी सोचा भी नहीं
कि वह मेरे कदमों को देख रहा था,
मेरे क्लास टाइम जानता था,
मेरी रूटीन पहचान चुका था।
धीरे-धीरे
मैं उससे छोटी-छोटी बातें साझा करने लगी—
कुछ परेशानियाँ,
थोड़ी थकान,
घर की झंझट,
फीस की चिंता।
वह हर बात ध्यान से सुनता और कहता—
“तुम बहुत अच्छी हो, काव्या।
तुम्हें कोई संभालने वाला चाहिए।”
उसकी आवाज़ में
एक अजीब-सी गर्माहट थी
जो मुझे सहज कर देती थी।
मैं उससे प्यार नहीं करती थी।
न ही दिमाग में ऐसा कुछ था।
मुझे बस लगता था
कि वह एक अच्छा, समझदार और नेक इंसान है।
लेकिन वह हर बार
ऐसी बातें कहता
जो मेरे दिल की कमजोरी को छू लेतीं।
कभी कहता—
“तुम मुस्कुराती हो तो दिन अच्छा लगने लगता है।”
कभी—
“तुम्हारी खामोशी भी बहुत कुछ कह देती है।”
और कभी—
“मेरा दिल कहता है कि तुम मेरी जिंदगी में किसी वजह से आई हो।”
मैंने सिर्फ सुनकर हँस दिया।
मैंने सोचा—
“ये प्यार-व्यार वाली बातें बस बड़े लोग casually बोल देते हैं…”
लेकिन धीरे-धीरे
मुझे उसके इरादों की झलक मिली।
एक दिन उसने बहुत साधारण अंदाज़ में कहा—
“काव्या… मैं तुम्हें हमेशा खुश रखूँगा।
तुम जैसी लड़की मेरे घर की रौनक होगी।”
उसने मेरे हाथ को ज़रा सा छुआ
और बोला,
“मैं तुम्हें अपनी बीवी बनाना चाहता हूँ।”
उसके “बीवी” शब्द ने
मेरे दिल में हल्की सी सनसनी पैदा कर दी।
मैं डर गई,
क्योंकि मैं उसे बस एक अच्छा इंसान मानती थी—
प्यार जैसा कुछ नहीं।
मैंने कहा,
“आप गलत समझ रहे हैं…”
और उसने तुरंत कहा,
“प्यार समझना पड़ेगा, काव्या।
तुम मेरी हो।”
अब उसके शब्द
मुलायम नहीं लगे।
उनमें एक पकड़ थी…
एक अधिकार।
मुझे बेचैनी महसूस होने लगी।
मैंने उससे थोड़ा दूरी बनानी चाही,
लेकिन वह और करीब आने लगा—
जैसे उसे मेरा डर भी अच्छा लग रहा हो।
और फिर
मुझे वह सच पता चला
जिसने मेरी दुनिया हिला दी—
वह पहले से तीन लड़कियों से शादी कर चुका था।
और तीनों को
इसी तरह की मीठी बातों,
इसी तरह की हमदर्दी,
इसी पीछा करने,
इसी trap में फँसाकर।
मैं सुन्न पड़ गई।
मेरे पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई।
और वहीं
मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई शुरू हुई—
उस आदमी से भी
और अपने खुद के भरोसे से भी।
मुझे जब यह पता चला कि शादाब पहले से तीन लड़कियों से शादी कर चुका है,
तो मेरे हाथ सुन्न हो गए।
दिल धड़कना बंद-सा हो गया।
ऐसा लगा जैसे मेरे सामने वाला इंसान किसी ड्रामे का हिस्सा नहीं,
एक खतरनाक चालबाज़ है…
जो मासूमियत को हथियार बनाकर लड़कियों की ज़िंदगी बर्बाद करता है।
मैंने तुरंत उससे दूरी बनानी शुरू कर दी।
कॉल नहीं उठाए,
मैसेज नहीं खोले,
और कॉलेज के बाहर भी उसके दिखते ही किसी और रस्ते से निकल जाती थी।
लेकिन उसे मेरी दूरी समझ नहीं आई—
या शायद समझ आई,
लेकिन वह मानने को तैयार नहीं था।
तीन दिन तक मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
चौथे दिन वह कॉलेज के गेट पर खड़ा मिल गया।
उसने रास्ता रोककर कहा,
“काव्या, क्या हुआ है?
क्यों ignore कर रही हो?
मैं मर जाऊँगा क्या?”
उसकी आँखों में नकली बेचैनी थी।
वही बेचैनी जिससे वह लड़कियों को अपने जाल में खींचता था।
मैंने अपने मन को मजबूत किया और कहा,
“मुझे सब पता चल गया है।
आप तीन शादियाँ कर चुके हैं।
आपने सबको इसी तरह झूठ बोलकर फँसाया था।”
वह एक पल के लिए चुप हो गया।
फिर चेहरा बदलकर बोला—
“किसने कहा? झूठ है सब!
तुम्हें मेरे दुश्मन फंसा रहे हैं!”
उसकी आवाज़ तेज़ होने लगी।
लोग इकट्ठा हो सकते थे,
इसलिए मैं वहाँ से हटने लगी।
पर वह पीछे-पीछे आया।
“काव्या, रुक जाओ!
तुम मेरी चौथी बीवी बनने वाली हो…
मैंने तुम्हें चुना है!”
मेरे शरीर में सिहरन दौड़ गई।
“चौथी बीवी”—
वह इसे इतना सामान्य,
इतना आसान,
इतना साधारण मानकर क्यों बोल रहा था?
मैंने जोर से कहा,
“मुझे आपकी बीवी नहीं बनना!
मैं किसी औरत की जगह नहीं लूँगी,
किसी झूठे आदमी की नहीं!”
वह गुस्से से काँपने लगा।
उसका वह नरम, शांत चेहरा
अब बिल्कुल अलग दिखने लगा—
जैसे असली रूप बाहर आ गया हो।
वह फुसफुसाकर बोला,
“काव्या…
तुम मुझे छोड़कर जा ही नहीं सकती।
तुम मेरी हो।
तुम्हें समझना पड़ेगा।”
उसकी आवाज़ में वह मिठास नहीं थी,
जो पहले हुआ करती थी।
उसकी जगह एक अजीब-सी पकड़,
एक अधिकार,
और एक डर पैदा करने वाली ताकत थी।
उसके बाद उसने वही खेल शुरू किया
जो वह हर लड़की के साथ करता था—
पहले प्यार से बोलता था…
“काव्या, मैंने तुमसे सच में प्यार किया है।
मैं बाकी सब छोड़ दूँगा तुम्हारे लिए।”
फिर guilt-trap…
“अगर तुम चली गई,
तो मैं बर्बाद हो जाऊँगा।
मैं जी नहीं पाऊँगा।”
फिर डराने की कोशिश…
“तुम्हें पता नहीं,
मैं तुम्हारे लिए क्या-क्या कर सकता हूँ।
तुम मेरी जिंदगी हो।”
मुझे सबसे ज़्यादा डर
उसकी आवाज़ नहीं,
उसकी आँखों से लग रहा था—
जो हर पल कह रही थीं,
“तुम मेरी हो, तुम मेरी रहोगी।”
मैंने उसे शांत आवाज़ में कहा,
“शादाब, आप मेरे लिए अजनबी से भी बदतर हो चुके हैं।
मैं आपके साथ एक शब्द भी नहीं बोलना चाहती।”
वह तुरन्त नरम हो गया।
जैसे स्विच बदल गया हो।
“ठीक है… ठीक है…
चिल्लाओ मत।
मैं समझता हूँ।
तुम गुस्से में हो।
लेकिन मैं तुम्हें खो नहीं सकता।
तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छोड़ने की?”
मैं पीछे हट गई।
मेरे पैर काँप रहे थे।
उसने धीरे से कहा—
“काव्या…
मैंने जो तीन शादियाँ कीं,
वे मेरी मजबूरी थीं।
पर तुम…
तुम मेरी प्यार हो।
मेरी आखिरी बीवी।
मेरी असली पत्नी।”
उसका “असली पत्नी” कहना
मेरे दिल में हजार चोटें कर गया।
मैंने उसे कड़े स्वर में कहा—
“आपकी कोई चौथी बीवी नहीं बनेगी।
आप किसी और की जिंदगी नहीं बिगाड़ेंगे।
मैं आपसे कभी नहीं मिलूँगी।”
और मैं सड़क पार करके
भीड़ में खो गई।
पीछे से उसकी आवाज़ आई—
“काव्या…
तुम्हें मेरी आदत पड़ जाएगी।
तुम मेरे पास लौटोगी।
लौटनी ही पड़ेगी!”
मैं नहीं रुकी।
न पीछे देखा।
बस चलती रही—
अपने डर के साथ,
अपनी गलती के साथ,
अपनी बंद होती साँसों के साथ।
लेकिन एक बात मैं पूरे यकीन से समझ चुकी थी—
मैं एक ऐसे आदमी से भाग रही हूँ
जो प्यार के नाम पर
सिर्फ लड़कियों का जीवन बर्बाद करता है।
पर मुझे यह नहीं पता था
कि अब वह इतना आसानी से
मुझे जाने नहीं देगा।
शादाब से दूर भागना जितना आसान मुझे लगा था,
वह उससे कहीं ज़्यादा मुश्किल निकला।
मैंने सोचा था कि
उससे बात बंद कर दूँगी,
उसके सामने नहीं आऊँगी,
तो वह खुद ही दूर हो जाएगा।
लेकिन मैंने उसकी असलियत बहुत देर से पहचानी थी—
वह उन लोगों में से नहीं था
जो आसानी से पीछे हट जाएँ।
अगले ही दिन
मैं कॉलेज के गेट से बाहर निकली तो
वह सामने खड़ा मिला…
सीधे मेरी आँखों में घूरता हुआ।
मैं पलटकर अंदर जाने लगी,
पर उसने मेरा रास्ता रोक लिया।
“काव्या…
तुम मुझसे बच क्यों रही हो?”
उसका स्वर शांत था,
पर आँखों में एक अजीब-सा पागलपन था।
मैंने उत्तर नहीं दिया।
उसने कदम आगे बढ़ाए।
“देखो, मुझे गुस्सा मत दिलाओ।
मैं तुमसे लड़ना नहीं चाहता।
बस ये जानना चाहता हूँ
कि तुम मुझसे दूर क्यों हो गई।
इतना प्यार दिया मैंने,
इतनी फिक्र की तुम्हारी…”
उसके “प्यार” शब्द ने
मेरे सीने में गुस्से और डर को एक साथ जगा दिया।
मैंने कठोर आवाज़ में कहा,
“आपने मुझे धोखा दिया।
आप तीन शादियाँ कर चुके हैं।
और आप मुझे चुप रखकर चौथी बनाना चाहते थे।
मुझे किसी जाल में नहीं फँसना।
कृपया मेरी जिंदगी से निकल जाइए।”
वह हँस पड़ा—
धीमी, खतरनाक हँसी।
“काव्या…
तुम्हें लगता है
मुझे शादी का शौक है?
मैंने तुम जैसी लड़की कभी नहीं देखी।
तुम खास हो।
मैं तुमसे निकाह करूँगा।”
मैं डर गई।
उसके चेहरे पर वह मिठास नहीं थी
जो पहले हुआ करती थी।
अब वहाँ एक पागलपन था—
एक जुनून।
एक खतरनाक जिद।
मैंने चिल्लाकर कहा,
“मैं आपके साथ कुछ नहीं चाहती!”
उसने कदम बढ़ाया और बुदबुदाया—
“पर मैं चाहता हूँ।
और जो मैं चाहता हूँ…
वह होते हुए ही रहता है।”
मैं भागते हुए लोगों के बीच निकल गई।
दिल इतनी तेज़ धड़क रहा था
जैसे वह सीने से बाहर आ जाएगा।
उस शाम
मैं हॉस्टल नहीं गई।
सिर्फ डर और बेचैनी ने मुझे पकड़ लिया था।
हर छाया में,
हर कदम की आवाज़ में
मुझे लगता था कि
वह मेरा पीछा कर रहा है।
और डर सच भी हो गया।
अगले दिन,
क्लास खत्म होते ही
मेरे फोन पर मैसेज आया—
“मैं बाहर हूँ।
मत भागना।”
मैं ठिठक गई।
किसी को मेरा नंबर कैसे मिला?
फिर याद आया—
उसने कभी बड़े नर्म तरीके से
“नोट्स भेजना हो तो दे देना” कहा था।
खुद नंबर नहीं माँगा था,
बस मौका बनाया था।
मैंने दिल मजबूत कर
उसका मैसेज ignore किया
और दूसरी तरफ से कैंपस से निकली।
लेकिन गेट के बाहर
उसकी गाड़ी वही खड़ी थी।
वह ड्राइवर सीट पर बैठा
मुझे घूर रहा था—
चुपचाप,
बिना पलक झपकाए।
वह कार से उतरा।
“काव्या…
मैं तुमसे आखिरी बार बात करना चाहता हूँ।”
मैं पीछे हट गई।
आवाज़ काँप गई।
“आप मुझे परेशान कर रहे हैं।
ये गलत है।
मुझे अकेला छोड़ दीजिए।”
उसकी आँखें लाल हो गईं।
उसने गुस्से से कहा—
“मैं तुम्हें किसी और के साथ देख भी नहीं सकता।
तुम मेरी हो!
तुम नहीं समझ रहीं?”
“मैं आपकी नहीं हूँ!”
मेरी आवाज़ टूट रही थी।
वह रुक गया,
चेहरे पर एक खतरनाक शांत भाव आ गया।
“काव्या…
मैंने तुम जैसी लड़की कभी नहीं देखी।
जो प्यार को समझती भी नहीं…
और मुझे दूर भी धकेलती है।
पर मैं छोड़ूँगा नहीं।
मैंने तुम्हें चुना है।
और मैं अपनी चौथी बीवी
तुम्हें बनाऊँगा।
यह मेरा वादा है।”
मेरी आँखों में डर भर गया।
यह आदमी बीमार था…
पागल था…
और मेरी जिंदगी के पीछे ऐसा पड़ा था
जैसे मैं कोई इंसान नहीं,
एक चीज़ हूँ।
मैंने चीखकर कहा,
“बस!
आपके साथ कुछ भी नहीं होगा।
आप मुझे नुकसान नहीं पहुँचा पाएंगे।
मैं अकेली नहीं हूँ!”
पर अंदर से मैं अकेली ही थी…
बहुत अकेली।
और यह अकेलापन
उसे और ताकत दे रहा था।
वह धीमे से बोला,
“देखते हैं, काव्या…
देखते हैं तुम कितने दिन मुझसे दूर रह पाती हो।”
वह वापस अपनी कार में बैठा और चला गया।
और मैं वहीं खड़ी कांपती रही—
जैसे मेरे पैरों के नीचे ज़मीन नहीं,
एक खाई हो।
उस पल मुझे पहली बार समझ आया—
जिस आदमी से मैं भाग रही हूँ,
वह सिर्फ धोखेबाज़ नहीं…
जुनूनी भी है।
खतरनाक भी।
और अब यह लड़ाई
केवल दिल की नहीं रही।
अब यह लड़ाई
खुद को बचाने की थी।
शादाब के “देखते हैं तुम मुझसे कितने दिन दूर रह पाती हो” कहने के बाद
मेरी ज़िंदगी अचानक किसी डरावने मोड़ पर मुड़ गई थी।
हर जगह मुझे उसकी परछाईं दिखती—
भीड़ में, बस में, गलियारे में,
यहाँ तक कि हॉस्टल के बाहर भी।
मैं हर समय चौकन्नी रहती,
पर डर से ज्यादा जो चीज़ मुझे तोड़ रही थी,
वह यह विचार था कि
मैं जैसे-जैसे उससे दूर जा रही थी,
वह उतनी ही तेजी से मेरी जिंदगी में घुसने की कोशिश कर रहा था।
एक सुबह मैं क्लास में बैठी थी
तो मेरी बैकबेंच पर बैठी दोस्त ने फुसफुसाकर कहा—
“तुम्हें पता है?
कोई आदमी तुम्हें बाहर से ढूंढ रहा है।
नाम शादाब बताया है।
कहता है तुम उसे ब्लॉक करके बैठी हो।”
मेरे पूरे शरीर में बिजली-सी दौड़ गई।
मैंने बिना कुछ कहे क्लास से निकलकर
सीधा गलियारे में देखा—
वह वहीं था।
मेरी तरफ देख रहा था।
अपनी आँखों से दबाव डालते हुए।
मैंने तुरंत दूसरी सीढ़ियों से जाकर
अपने विभाग के कॉरीडोर में छिप गई।
लेकिन वह वहाँ भी पहुँच गया।
उसके कदमों की आवाज़…
मेरे दिल में हथौड़े की तरह पड़ रही थी।
“काव्या…”
वह धीरे से बोला,
“क्यों भागती हो?
तुम जितना भागोगी,
मैं उतना पास आऊँगा।”
मैं काँपती आवाज़ में बोली,
“आप मेरी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं!
मुझे अकेला छोड़ दीजिए!”
उसने आँखें तरेरीं।
“अकेला?
तुम्हें लगता है
मैं तुम्हें अकेला छोड़ दूँगा?
मैंने तुम्हें चुना है।”
उसकी “चुनने” वाली बात
मेरे अंदर तक घुस गई।
मैं दौड़कर हॉस्टल पहुँची।
रूम में जाकर दरवाज़ा बंद किया।
लेकिन यह बंद दरवाज़ा
मुझे अंदर से और भी कमजोर बना रहा था।
शाम को
शादाब का लंबा मैसेज आया—
“तुम मेरे बिना नहीं रह सकती।
तुम्हें खुद नहीं पता तुम मुझसे कितना प्यार करती हो।
मैं तुम्हारे लिए सब कर दूँगा।
तुम बस हाँ कर दो।
फिर मैं बाकी बीवियों से भी निपट लूँगा।”
बाकी बीवियों से निपट लूँगा?
मैंने मैसेज पढ़ा
और मुझे खुद पर भी घिन आई
कि मैं एक समय इस आदमी को अच्छा समझ बैठी थी।
उस रात मैं सो नहीं पाई।
मैंने कॉलेज छोड़ने की भी सोची,
पर घर की हालत ऐसी नहीं थी
कि मैं ये फैसला ले सकूँ।
अगले दिन
वह और गिरा हुआ कदम उठाया—
⭐ उसने कॉलेज में मेरी इमेज खराब करनी शुरू कर दी
2–3 लड़कियों के पास जाकर बोला,
“वो मेरी होने वाली बीवी है।”
“मैंने उसको अपने घर वालों से मिलवा दिया है।”
“हमारी बात पक्की हो चुकी है।”
जब ये बातें मेरे कानों तक पहुँचीं,
मेरी सांस अटक गई।
मेरी दोस्त ने घबराकर कहा—
“काव्या, वो तुम्हारे बारे में उल्टी-सीधी बातें फैला रहा है!
यह आदमी खतरनाक है।”
मैं हिम्मत करके उसके पास गई।
पहली बार,
मैंने खुद उसे सामने रोका।
“आप क्यों झूठ फैला रहे हैं?
मुझे क्यों परेशान कर रहे हैं?”
वह हल्के से मुस्कुराया।
“रिश्ता छुपाकर रखने से अच्छा
सबको बता दो।”
“कौन-सा रिश्ता??”
मैंने चीखकर कहा।
उसकी आँखें ठंडी हो गईं।
“जो मैं चाहता हूँ।
और जो तुम मानने से इनकार कर रही हो।”
मैंने उसकी आँखों में बिना झिझके पहली बार देखा।
“आपको शर्म नहीं आती?
तीन बीवियाँ हैं आपकी।
और अब चौथी बनाने की घिनौनी कोशिश?
मैं कोई चीज़ हूँ?
आपके पास चुनने को?”
वह चुप हो गया…
कुछ सेकंड के लिए।
फिर शांत,
बहुत खतरनाक शांत स्वर में बोला—
“मैं मानता हूँ…
मेरी पहले भी शादियाँ हुई हैं।
पर मैंने जिसको भी चुना,
दिल से चुना।
तुम मुझे ठुकरा नहीं सकती,
क्योंकि तुम मुझे जरूरत हो।”
उसकी “जरूरत हो” वाली बात
जैसे मेरे दिमाग में गूँज गई।
मैंने गुस्से से कहा—
“आपकी जरूरत किसी औरत की नहीं…
किसी डॉक्टर की है।
मैं आपको पूरी जिंदगी के लिए ब्लॉक कर रही हूँ।”
वह धीमे से हँस पड़ा।
“ब्लॉक?
मुझे ब्लॉक करोगी?
मुझसे बचना चाहती हो?”
फिर उसकी आवाज़ बदल गई—
आधी धमकी,
आधा जुनून।
“काव्या,
मैं जब चाहता हूँ तब मिलता हूँ…
जहाँ चाहता हूँ वहाँ मिलता हूँ।
तुम भागकर कहाँ जाओगी?”
मैं डर गई।
लेकिन इस बार डर में
गुस्सा भी घुल चुका था।
मैंने पहली बार
पूरी ताकत से बोला—
“जहाँ भी जाऊँगी,
आप मेरे जीवन का हिस्सा नहीं बनेंगे।
कभी नहीं।”
और मैं वहाँ से चली गई।
तेज़ कदमों से।
आँखों में आँसू
लेकिन दिल में एक निर्णय—
अब मैं डरने वाली नहीं हूँ।
अब मैं लड़ूँगी।
अपनी इज्जत के लिए,
अपनी सुरक्षा के लिए,
और अपनी जिंदगी के लिए।
मैं नहीं जानती थी
आगे क्या होने वाला है।
लेकिन इतना तय था—
अब यह मेरी कहानी नहीं,
एक लड़ाई थी।
शादाब से जिस दिन मैंने कहा था कि
“आप मेरे जीवन में कभी नहीं रहेंगे,”
उस दिन से उसकी आँखों में जो पागलपन मैंने देखा…
वह मुझे कई रातों तक सोने नहीं देता था।
लेकिन मुझे नहीं पता था
कि असली तूफ़ान अभी बाकी था।
अगली सुबह मैं जल्दी कॉलेज पहुँची,
ताकि उससे सामना न हो।
मैंने सोचा—
“चुपचाप पढ़ाई करूँगी,
किसी से बात नहीं करूँगी,
वह खुद-ब-खुद थक जाएगा।”
लेकिन जैसे ही मैं कॉरिडोर में पहुँची,
दो-तीन लड़कियाँ मेरे पास आईं।
“काव्या… तुम ठीक हो?
वो आदमी… वो तो तुम्हारे बारे में कुछ अजीब बातें कर रहा है।”
मेरा दिल धड़का।
“कौन आदमी?”
“वही… जिसने कहा था कि तुम उसकी होने वाली बीवी हो।
आज उसने कहा है कि तुम लोग घर तक मिलने लग गए हो।”
मेरी आँखें भर आईं।
मेरी प्रतिष्ठा,
मेरी इमेज,
मेरी पहचान…
सब दांव पर लग रही थी।
मैंने तुरंत बाहर देखा—
वह वहीं था,
गाड़ी की बोनट पर हाथ रखे,
जैसे किसी फिल्म का हीरो हो।
लेकिन उसके चेहरे पर वह दया नहीं थी
जो वह मुझे दिखाता था।
आज उसका चेहरा साफ़ कह रहा था—
“मैं तुम्हारी जिंदगी में रहूँगा…
चाहे तुम चाहो या नहीं।”
मैं क्लास के बाहर नहीं गई।
पूरे दिन अंदर ہی बैठी रही।
लेकिन दिल में डर और गुस्सा दोनों जल रहे थे।
⭐ उस रात — सबसे खतरनाक मैसेज आया
रात को मेरा फोन वाइब्रेट हुआ।
नंबर ब्लॉक था—लेकिन पता नहीं कैसे मैसेज आ ही गया।
“काव्या…
अगर तुम मेरी नहीं हुई,
तो किसी की भी नहीं होने दूँगा।
मैंने तीनों को अपने पास रखा…
तुमसे ज़्यादा प्यारी कोई नहीं।”
मेरे हाथ काँप गए।
फोन गिरते-गिरते बचा।
उसका मैसेज…
उसकी सोच…
उसकी रवैये…
सबने मेरे दिल में एक बात साफ़ कर दी—
यह आदमी सिर्फ धोखेबाज़ नहीं,
खतरनाक भी है।
मैंने फोन को कसकर पकड़ा
और खुद को नियंत्रित करते हुए
कहा—
“काव्या…
या तो आज डर खत्म होगा,
या ज़िंदगी बर्बाद।”
मैंने पहली बार किसी को अपने डर के बारे में बताया—
अपने भाई को।
वह तुरंत हॉस्टल आया।
मैंने पूरी कहानी बताई,
शादाब का पीछा करना,
उसकी शादियाँ,
उसकी बातें,
उसका झूठ,
उसका जुनून।
भाई की आँखें खून से भर गईं।
उसने कहा—
“उसकी हिम्मत कैसे हुई?
तू डर मत।
अब तेरा भाई है न।”
मेरी आँखों से आँसू बह निकले—
शायद राहत के,
शायद डर के,
शायद किसी अपने की मौजूदगी के।
⭐ अगले दिन — मैं अकेली नहीं थी
मैं भाई के साथ कॉलेज पहुँची।
शादाब पहले से गेट पर खड़ा था।
वह मुझे भाई के साथ देखकर
पहली बार घबरा गया।
वह मेरे सामने आया और बोला—
“काव्या!
मैंने कहा था न…
तुम मेरी हो।
तुम मेरी बनोगी!”
मेरे भाई ने सामने आकर कहा—
“अपनी जुबान को संभाल।
मेरी बहन कोई चीज़ नहीं है
जिसे तुम चुनते फिरो।
एक कदम आगे बढ़ा…
अंजाम बुरा होगा।”
शादाब पीछे हट गया।
उसकी आँखों में डर आया…
शायद पहली बार।
पर अगले ही पल
साँप की तरह फुँफकारते हुए बोला—
“काव्या…
तुम जिसे भी साथ लाओ,
मैं तुम्हें छोड़ूँगा नहीं।
तुम्हें मेरी होना ही पड़ेगा।”
मेरी आवाज़ काँपी,
लेकिन हिम्मत दिखाते हुए मैंने कहा—
“मेरी जिंदगी तुमसे बहुत बड़ी है।
तुम्हारी चार शादियों की सच्चाई भी बड़ी है।
मैं तुम्हारा हिस्सा कभी नहीं बनूँगी।
तुम जैसे आदमी से डरना अब बंद।”
और मैं भाई के साथ चल दी।
शादाब चीखता रहा—
“काव्या…
तुम सुन क्यों नहीं रही?
तुम मेरी हो!!
मेरी!!”
लेकिन उसकी आवाजें
अब मेरे पीछे रह गईं।
⭐ उस रात — मेरा सबसे बड़ा फैसला
मैंने अपने भाई से कहा—
“मुझे पुलिस में शिकायत करनी होगी।”
भाई ने मेरा हाथ पकड़ा—
“चल। मैं साथ हूँ।”
मैं रो नहीं रही थी।
मैं बस सोच रही थी—
“मैं उस दरिंदे से बच गई…
जिसने तीन लड़कियों की जिंदगी बर्बाद कर दी,
और अब चौथी बनाना चाहता था।”
शिकायत लिखते समय
मेरे हाथ काँप नहीं रहे थे।
मेरी आवाज़ टूट नहीं रही थी।
मैं पहली बार
खुद के लिए लड़ रही थी।
मैंने FIR में साफ़ लिखा—
“यह आदमी मेरा पीछा करता है,
झूठ बोलता है,
विवाह का धोखा देता है,
और मेरी जिंदगी को खतरा है।”
पुलिस ने तुरंत उसे बुलावा भेजा।
और उस रात पहली बार
मैंने लंबी साँस ली…
शायद महीनों बाद।
पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराते समय
मेरे भीतर एक डर और एक ताकत
दोनों एक साथ लड़ रहे थे।
डर—क्योंकि एक जुनूनी आदमी से पंगा लेना आसान नहीं था।
ताकत—क्योंकि आखिरकार मैं अपनी रक्षा कर रही थी।
लेकिन FIR दर्ज होने के बाद भी
मेरे मन में एक सवाल बार-बार घूम रहा था—
क्या वह रुक जाएगा?
या और खतरनाक हो जाएगा?
मेरे अंदर का डर सही निकला।
अगले दिन ही
मुझे उसके नंबर से कॉल नहीं,
बल्कि एक वीडियो मिला।
वीडियो में वही था—
शादाब।
उसकी आँखें लाल थीं,
चेहरा गुस्से और दर्द के बीच फँसा हुआ।
एक हाथ में पानी की बोतल,
दूसरे हाथ में दवा।
और वह बोल रहा था—
“काव्या…
अगर तुम नहीं मिली,
तो मैं जहर खा लूँगा।
और मर जाऊँगा।
फिर तुम्हें अपने जीवन भर
मेरी मौत का बोझ उठाना पड़ेगा।”
मैं स्तब्ध रह गई।
मेरे हाथ-जोड़ जैसे निष्क्रिय पड़ गए।
मेरे पैरों में जैसे जान ही नहीं रही।
यह आदमी…
सिर्फ खतरनाक नहीं था—
बीमार था।
जुनूनी था।
और अब अपना नुकसान करके
मुझे नुकसान पहुंचाना चाहता था।
मैंने तुरंत भाई को दिखाया।
भाई का खून खौल गया।
“वो ड्रामा कर रहा है, काव्या।
यह सब तुझे डराने के लिए है।
मत घबरा।”
लेकिन मेरा दिल फिर भी काँप रहा था।
मैंने वीडियो पुलिस को दिखाया।
उन्होंने कहा—
“ये भावनात्मक ब्लैकमेल है।
FIR में जोड़ेंगे।
तुम डरो मत, वह निगरानी में रहेगा।”
पर रात जब आई,
मेरे मन में वही वीडियो,
वही आँखें,
वही शब्द…
एक-एक पल मेरा पीछा कर रहे थे।
मैंने अपने आप को समझाया—
“काव्या, वह नाटक कर रहा है।
यह आदमी कभी खुद को नुकसान नहीं पहुँचाएगा।
वह सिर्फ तुझ पर दबाव डाल रहा है।”
लेकिन अगले दिन
खतरा और बढ़ गया।
⭐ वह मेरे हॉस्टल के बाहर पहुंचा
मैं कमरे में बैठकर पढ़ रही थी
कि अचानक बाहर जोर-जोर की आवाजें आने लगीं।
मैंने खिड़की से झाँका—
और मेरी सांस रुक गई।
शादाब
हॉस्टल के नीचे खड़ा था।
कपड़े भीगे हुए,
चेहरा पागलों जैसा,
और हाथ में कोई कागज़।
वह चिल्ला रहा था—
“काव्या!
मेरी बात सुनो!
मुझे बाहर बुलाओ!”
मैं डर के मारे पीछे हट गई।
सहेलियाँ घबरा गईं।
किसी ने वार्डन को बुलाया,
किसी ने सिक्योरिटी।
नीचे सिक्योरिटी वाले बोले—
“यहाँ से जाओ वरना पुलिस बुलाएँगे!”
पर शादाब नहीं हटा।
वह और जोर से चिल्लाने लगा—
“मैं उससे प्यार करता हूँ!
वो मेरी बीवी बनेगी!
कोई रोक नहीं सकता!”
मेरी टाँगें थर-थर काँप रही थीं।
मेरे रूममेट ने मेरा हाथ पकड़ा—
“मत दिखाना खुद को।
नहीं तो वह और बेकाबू हो जाएगा।”
मैं कमरे में बैठी
अपना मुँह दोनों हाथों से ढककर
रोने लगी।
और तभी
शादाब ने अचानक
कागज़ को फाड़ते हुए
चिल्लाया—
“अगर तुम नीचे नहीं आई
तो मैं खुद को खत्म कर दूँगा!
अभी!
यहीं!
सबके सामने!”
भीड़ जमा हो गई थी।
किसी ने पत्थर उठाकर उसकी तरफ फेंका।
वार्डन चीखी—
“पुलिस को बुलाओ!”
मैंने पहली बार जीवन में
किसी चीज़ के लिए इतना डर महसूस किया।
मैंने अपने भाई को फोन किया।
वह 15 मिनट में हॉस्टल आ गया
और सीधे शादाब के सामने खड़ा हो गया।
“अबकी बार हट जा यहाँ से!”
भाई गरजकर बोला।
“वरना यहाँ नहीं, सीधे जेल जाएगा!”
शादाब ने भाई को देखकर
पहली बार डर दिखाया।
उसने पीछे हटते हुए कहा—
“मैं… बस काव्या से बात करना चाहता हूँ…”
भाई चीखा—
“उससे कोई बात नहीं करेगा!
तू जहर खा लेना चाहता है?
जा खा!
मेरी बहन को मत धमका।”
लोग उसे घूर रहे थे।
वार्डन ने चिल्लाकर कहा—
“पुलिस आ रही है।”
और तभी
शादाब ने कार में बैठकर
फुल स्पीड में गाड़ी भागा ली।
मेरी आँखों में आँसू थे…
लेकिन इस बार
डर के नहीं।
इस बार मेरे अंदर गुस्सा था।
और गुस्से में ही ताकत थी।
⭐ उस रात — मैंने आखिरी फैसला लिया
मैं पुलिस स्टेशन पहुँची
और FIR में नया सेक्शन जोड़वाया—
स्टॉकिंग, धमकी, आत्महत्या का डर दिखाना,
महिला की सुरक्षा को खतरा।
पुलिस ने कहा—
“अब हम इसे गिरफ्तार कर सकते हैं।
तुम मजबूत रहो।”
जब मैं बाहर निकली
आसमान में हल्की बारिश हो रही थी।
ठंडी हवा मेरे चेहरे पर पड़ रही थी।
और मैं मुस्कुराई नहीं,
पर एक भारी बोझ उतर गया।
मैंने धीरे से फुसफुसाया—
“मैंने खुद को बचा लिया।”
और उसी पल
मुझे लगा
मैंने सिर्फ शादाब से नहीं,
अपने डर से भी जीत हासिल की है।
पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करके
मैंने सोचा था कि शायद सब खत्म हो जाएगा।
लेकिन अंदर ही अंदर मुझे पता था—
जिस आदमी ने तीन ज़िंदगियाँ नष्ट की थीं,
जिसने मुझे चौथी बनाना चाहा था,
वह यूँ ही अचानक गायब नहीं होगा।
और मेरी यही सोच अगले दिन सच हो गई।
सुबह पुलिस का फोन आया—
“काव्या, हमें आपकी तरफ से कुछ और जानकारी चाहिए।
क्या आप स्टेशन आ सकती हैं?”
मेरे भाई ने तुरंत कहा—
“चल, मैं साथ चलूँगा।”
मैंने गहरी सांस ली और दोनों स्टेशन पहुँचे।
जैसे ही हम अंदर गए,
एक पुलिसवाले ने इशारा किया—
“वह देखो, उसे पकड़ लाए हैं।”
मैं आखिरकार उसे देख पाई—
शादाब खान।
कभी खुद को बहुत स्मार्ट समझने वाला,
मेरे पीछे हर जगह घूमने वाला,
अपनी ‘बीवी’ बनाने की जिद करने वाला आदमी,
आज पुलिस की कुर्सी पर बैठा
नीचे जमीन को घूर रहा था।
उसकी आँखों में वही चमक नहीं थी,
जिनसे वह पहले मुझे जाल में फँसाता था।
उसकी चालाकी गायब थी।
उसका आत्मविश्वास हवा हो चुका था।
वह…
एक अपराधी की तरह लग रहा था।
पुलिस अधिकारी ने कहा—
“हमने इसे कल रात पकड़ लिया था।
आपके हॉस्टल के बाहर हंगामा कर रहा था।
और शिकायत दर्ज है तो अब मामला गंभीर है।”
मैंने उसकी तरफ देखा,
और शायद पहली बार
मैंने अपने अंदर कोई डर नहीं महसूस किया।
सिर्फ एक खालीपन…
और राहत।
उसने मुझे देखा,
अपनी धीमी कंपकंपाती आवाज़ में बोला—
“काव्या…
तुमने मेरे साथ यह क्यों किया?
मैं तुमसे प्यार करता था…”
मैंने उस पल खुद को बहुत मजबूत पाया।
मैं उसके सामने जाकर खड़ी हुई और कहा—
“जो प्यार को जाल बनाता है
वह प्यार नहीं करता,
किसी का इस्तेमाल करता है।
तुमने तीन लड़कियों की जिंदगी बरबाद की।
अगर मैं चुप रहती,
तुम चौथी भी बना देते।”
उसकी आँखें लाल हो गईं।
वह उठने की कोशिश करने लगा
पर पुलिस ने उसे दबा लिया।
“बैठ!”
एक ठंडा आदेश आया।
मैंने उसकी आँखों में आखिरी बार देखा।
“तुम्हें लगता था मैं तुम्हारी हो जाऊँगी…
लेकिन मैं किसी की संपत्ति नहीं हूँ।
न तुम्हारी।
न किसी और मरीज दिमाग वाले आदमी की।”
उसने फुसफुसाकर कहा—
“मैं जेल से निकलूँगा…
फिर देखूँगा—”
पुलिस अधिकारी ने वहीं डाँट दिया—
“एक शब्द और बोला तो कोर्ट में मुँह उठाने लायक नहीं छोड़ेंगे!”
और उसी पल
मुझे एहसास हुआ—
अब वह मुझे नहीं डराता,
वह खुद डरा हुआ है।
उसका दिमाग,
उसका खेल,
उसकी चालाकी—
सब खतम।
अब वह एक केस था,
एक फाइल था,
एक अपराधी था।
अगले कुछ हफ्तों में
केस चलने लगा।
तीनों पहले की लड़कियाँ भी सामने आईं।
उन्होंने भी अपने बयान दिए।
पुलिस ने पूरा जाल समझ लिया।
और कुछ ही दिनों में
उसे स्टॉकिंग, धमकी, भावनात्मक ब्लैकमेल,
और धोखे से रिश्ते बनाने की साजिश में
जेल भेज दिया गया।
उसे सज़ा मिली।
लम्बी।
जिस दिन वो जेल गया
उस दिन लाइब्रेरी से बाहर निकलते हुए
मैंने आसमान की तरफ देखा।
कितने दिनों बाद
मन हल्का हुआ था।
साँस साफ़ आई थी।
दिल शांत लगा था।
मैं खुद को धीरे से मुस्कुराती हुई पाई—
“मैंने जीत लिया।”
यह जीत सिर्फ उस आदमी पर नहीं थी
जिसने मेरी जिंदगी बर्बाद करने की कोशिश की थी।
यह जीत
मेरे अपने डर पर थी।
मैं हॉस्टल की ओर चलने लगी।
हवा हल्की थी।
हाथ में नोट्स थे।
दिल में हिम्मत थी।
और मेरी सोच सिर्फ एक थी—
“अब मेरी जिंदगी
मेरी है।
किसी की साजिश नहीं।
किसी का डर नहीं।
किसी का जाल नहीं।”
मैंने चलना नहीं छोड़ा।
मैंने जीना नहीं छोड़ा।
मैंने खुद को टूटने नहीं दिया।
यही मेरी असली जीत थी।
यही मेरी कहानी।
यही मेरी ‘पुष्पा’—
जो किसी के आगे झुकी नहीं।






