पहला दिन था कॉलेज का, और मैं हमेशा की तरह जल्दी आ गई थी। चारों तरफ नए चेहरे, नई आवाज़ें, नए हावभाव… लेकिन मेरे अंदर एक अजीब-सी घबराहट थी। शायद इसलिए क्योंकि मैं बड़ी मुश्किल से घर से निकलकर इस नए माहौल में आई थी, या शायद इसलिए… कि मुझे पता भी नहीं था कि आज मेरी ज़िंदगी में कौन सा मोड़ आने वाला है।
मैं क्लास की तरफ जा रही थी तभी मैंने उसे पहली बार देखा—
आर्यन।
नज़रें बस एक पल को मिली थीं,
लेकिन उस एक पल में ऐसा लगा जैसे मेरी साँस थोड़ी रुक गई हो।
वो बाकी लड़कों जैसा बिल्कुल नहीं था।
उसमें कुछ था… कुछ शांत, कुछ गहरा, कुछ ऐसा जो दिल को एकदम खींच ले।
क्लास में प्रोफेसर ने सीटें बदलवाईं,
और पता नहीं किस किस्मत से मैं जाकर उसके ठीक बगल वाली सीट पर बैठ गई।
मैंने हल्की-सी मुस्कान देकर “हाय” कहा।
उसने बहुत धीरे से मुस्कुराया,
जैसे उसे डर हो कि कहीं उसकी मुस्कान ज़्यादा न हो जाए।
न जाने क्यों, लेकिन उसका इतना कम बोलना मुझे और ज़्यादा उसकी तरफ खींचता था।
क्लास में नोट्स बांटते हुए हमारे हाथ पहली बार टकराए।
बहुत हल्का-सा स्पर्श था…
लेकिन उस पल मेरे भीतर कुछ झनझना सा गया।
मैंने उसकी तरफ देखा—
वो भी मुझे देख रहा था।
हम दोनों की आँखें कुछ सेकेंड तक अटकी रहीं।
मेरे गाल हल्के से गर्म हो गए।
प्रोजेक्ट के बहाने लाइब्रेरी में साथ बैठना भी कुछ कम खतरनाक नहीं था।
टेबल तो इतनी छोटी थी कि अगर मैं हाथ भी हिलाऊँ तो उसकी उँगलियाँ छू जाएँ।
और हुआ भी वही।
मैं pen ढूंढ रही थी,
वह टेबल के नीचे गिर गया।
जैसे ही मैं उसे उठाने झुकी,
मेरी उंगलियाँ उसकी उंगलियों से टकराईं।
सिर्फ एक छोटी-सी टक्कर।
पर मैं झूठ नहीं बोलूँगी—
मेरी साँस सच में रुक-सी गई।
मैंने ऊपर देखा…
वह मुझे ऐसे देख रहा था जैसे मेरे चेहरे पर उसकी आँखें रुक गई हों।
वो नज़र…
बहुत मासूम भी थी, और बहुत गहरी भी।
मैंने धीरे से हिम्मत कर पूछा,
“तुम बहुत शांत रहते हो, है ना?”
वह हल्का-सा मुस्कुराया और बोला,
“और तुम बहुत… बेचैन कर देती हो।”
उसकी ये बात मेरे दिल को ऐसे लगी जैसे किसी ने चुपके से राज खोल दिया हो।
शाम के वक़्त जब हम दोनों कैंपस में टहल रहे थे,
हवा हल्की थी…
लाइट्स जल चुकी थीं…
और वह मेरे इतना करीब था कि उसकी गर्माहट मैं अपनी बाँह पर महसूस कर सकती थी।
मैं जाने कैसे अचानक हल्का-सा लड़खड़ा गई।
वह तुरंत मेरे कलाई पकड़कर रोकता है।
उसकी उँगलियाँ मेरी त्वचा को छू रही थीं…
और मैं कसम खाकर कह सकती हूँ,
उस पल मेरा दिल मेरी छाती से बाहर आना चाहता था।
मैंने उसकी पकड़ को देखा,
फिर उसकी आँखों में देखा।
मेरे पास कहने को कुछ नहीं था,
लेकिन शायद मेरा चेहरा ही सब बोल रहा था।
कैंपस गेट पर पहुँचकर मैं रुक गई।
मुझे नहीं पता क्यों…
पर मेरे अंदर एक छोटा-सा डर था—एक ऐसा डर जो सिर्फ किसी को पसंद आने पर ही होता है।
मैंने धीमे से कहा,
“आर्यन… तुमसे मिलकर अजीब-सा सुकून मिलता है… और थोड़ा डर भी।”
उसने चौंककर पूछा,
“डर? मुझसे?”
मैंने नज़रें झुका लीं।
“डर इस बात का… कि कहीं तुम्हें खो ही न दूँ,
इससे पहले कि तुम्हें अपना बना पाऊँ।”
ये बात मैंने खुद से भी नहीं कही थी कभी।
लेकिन आज निकल गई…
और उसी एक पल से मुझे समझ आ गया—
मैं सच में उसकी तरफ खिंच रही हूँ।
शायद जितना खिंचना नहीं चाहिए था।
और यही…
हमारी कहानी की शुरुआत थी। अगले कुछ दिनों में आर्यन के साथ रहने का एक अलग ही असर मुझ पर होने लगा था।
वो कुछ खास नहीं करता था—न ज़्यादा बोलता, न सामने से फ्लर्ट…
लेकिन उसके पास बैठे रहना, उसकी सुगंध, उसका शांत स्वभाव,
उसकी आँखों की गहराई—सब मिलकर मेरे अंदर एक नर्म-सा तूफ़ान खड़ा कर देते थे।
मुझे खुद नहीं समझ आता था कि मैं हर सुबह क्लास में सबसे पहले किसका चेहरा ढूँढती हूँ।
और जैसे ही उसकी हल्की-सी मुस्कान दिखती,
मेरा पूरा दिन अच्छा हो जाता।
एक दिन लाइब्रेरी में बहुत भीड़ थी।
कोई कोना नहीं मिला, तो हम दोनों एक छोटी-सी गोल टेबल पर आमने-सामने बैठ गए।
टेबल इतनी छोटी थी कि मेरे हाथ और उसके हाथ के बीच बस थोड़ा-सा फासला था।
मैं पढ़ने का नाटक कर रही थी,
लेकिन मेरा ध्यान उसकी उंगलियों पर अटका हुआ था—
लंबी, साफ-सुथरी, शांत…
जैसे उनमें भी उसकी ही तरह नरमी छिपी हो।
कभी-कभी जब वह पन्ना पलटता,
उसकी उँगलियाँ थोड़ी-सी मेरे हाथ के पास आ जातीं।
और मेरे अंदर एक गर्म लहर सी उठती।
उसने मुझे नोट्स देते हुए पूछा,
“तुम ठीक हो? आज थोड़ा… चुप लग रही हो।”
मैंने किताब के पन्ने पर उंगली फेरते हुए कहा,
“तुम्हारे आस-पास हूँ… इसलिए शायद।”
मेरी आवाज़ खुद मुझे थोड़ी भारी लगी।
वो मुझे कुछ सेकंड तक देखता रहा—
ऐसे जैसे वह मेरी बात समझ रहा हो,
मेरी आँखों का मतलब पढ़ रहा हो।
उस दिन पहली बार,
उसने धीरे से अपना हाथ टेबल के पास मेरी तरफ बढ़ाया।
ज्यादा नहीं… बस इतना कि उसकी उंगलियों से कुछ सेंटीमीटर का फासला रह गया।
मेरे दिल ने एक पल के लिए धड़कना छोड़ दिया।
मैंने भी बिना सोचे अपना हाथ थोड़ा-सा उसकी तरफ बढ़ाया।
अब हमारे हाथों के बीच बस एक साँस जितनी दूरी थी।
और फिर…
वो हुआ, जिसका मैं पिछले कई दिनों से इंतज़ार कर रही थी।
मेरी उंगलियाँ हल्के से उसकी उंगलियों को छू गईं।
सिर्फ एक हल्का-सा स्पर्श।
इतना धीरे कि अगर हवा चल रही होती तो शायद महसूस भी न होता।
पर मेरे लिए…
वो स्पर्श मेरे पूरे शरीर में जैसे गर्माहट भर गया।
मैंने अपनी उंगलियों को नहीं हटाया।
उसने भी नहीं।
कुछ सेकंड के लिए हम दोनों ऐसे ही बैठे रहे—
उंगलियाँ हल्के-हल्के एक-दूसरे की तरफ झुकी हुईं।
न पूरी पकड़,
न पूरा स्पर्श…
बस वो बीच का नाज़ुक-सा एहसास
जो दिल को बाँध लेता है।
मेरी साँसें थोड़ी भारी होने लगी थीं।
मैंने धीमे से पूछा,
“तुम… इतना शांत कैसे रह लेते हो?”
वह हल्का-सा मुस्कुराया,
“क्योंकि अगर मैं थोड़ा भी बोलूँ… तो शायद बहुत कुछ कह दूँ।”
उसकी इस लाइन ने मेरे पूरे शरीर में सिहरन दौड़ा दी।
शाम को उसने पूछा कि क्या मैं कैफ़े चलूँगी।
मैंने हाँ कहा—शायद खुद को रोक नहीं पाई।
कैफ़े में ठंड थी,
और मैं दुपट्टा ठीक करती रही।
उसने मुझे देखते हुए कहा,
“ठंड लग रही है?”
मैंने धीरे से सिर हिलाया।
वह कुछ बोल पाता उससे पहले मैंने खुद कहा—
“तुम्हारे पास बैठूँ तो शायद ठीक लगे।”
वह थोड़ा चौंका,
लेकिन उसकी आँखों में एक नर्मी-सी आई।
वह कुर्सी थोड़ा करीब खिसका कर मेरे बगल में बैठ गया।
उसकी गर्माहट मेरे बाजू से लगी…
और मेरी पूरी त्वचा में जैसे एक गुनगुनाहट सी फैल गई।
मैंने हिम्मत करके उसका हाथ अपने हाथ के पास रखा—
बहुत धीरे।
और फिर अपनी उंगलियों को उसकी उंगलियों में पिरो दिया।
वह पल…
मेरे लिए किसी confession से कम नहीं था।
उसने मेरी उंगलियाँ हल्के से दबाईं,
और मेरी साँसें सच में रुक गईं।
मैंने धीमे से फुसफुसाया,
“आर्यन… मैं तुम्हें चाहने लगी हूँ।
पर मुझे डर भी लग रहा है।”
उसने मेरी तरफ देखा।
“किस बात से?”
मैंने नज़रें झुका लीं।
मेरी आवाज़ काँप रही थी—
“इस बात से…
कि कहीं एक दिन मैं ही दूर न हो जाऊँ।
या तुम चले न जाओ।
क्योंकि जो चीज़ दिल को सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगती है…
कभी-कभी वही सबसे पहले टूटती भी है।”
मैंने यह बात बोली,
पर खुद को आधी भी नहीं समझ पाई।
उसने मेरा हाथ और कसकर थाम लिया।
उसकी उंगलियों की पकड़ में एक वादा था—
लेकिन उस वादे के पीछे मैं एक हल्की-सी अनजानी बेचैनी महसूस कर रही थी।
जैसे कुछ होने से पहले ही
मैं टूटने के डर से काँप रही थी।
और सच कहूँ…
मुझे नहीं पता था कि यह डर
आने वाले दिनों में कितना सच होने वाला है।
उस शाम के बाद, जब मैंने कैफ़े में उसका हाथ थामा था, हमारी बातों का रंग जैसे बदल गया था।
पहले मैं उसे सिर्फ पसंद करती थी,
लेकिन अब…
अब मैं उसके बिना दिन पूरा सोच भी नहीं सकती थी।
हर सुबह मैं क्लास में सबसे पहले उसकी सीट ढूँढती,
और अगर वह वहाँ बैठा हुआ अपनी किताब में खोया होता,
तो दिल के अंदर एक अजीब-सी शांति उतर जाती।
मैंने खुद कभी नहीं सोचा था कि किसी की मौजूदगी
इतनी गहरी और नर्म हो सकती है।
एक शाम उसने कहा,
“चलो, terrace चलते हैं। आज हवा अच्छी है।”
मैं उसके साथ चली गई।
कैंपस की इमारत की छत पर पहुँचकर
हवा मेरे बालों से खेल रही थी।
मैं railing के पास जाकर खड़ी हो गई।
आर्यन भी मेरे बगल में खड़ा था।
बहुत करीब।
इतना कि उसकी साँसें मेरी गर्दन के पास महसूस हो रही थीं।
मेरे अंदर जैसे कोई सिहरन उतर गई।
मैंने उसकी तरफ देखा,
वह मुझे देख रहा था…
ऐसे जैसे वह मेरे चेहरे की हर लकीर याद कर लेना चाहता हो।
मैंने हिम्मत करके पूछा,
“तुम इतने… अलग क्यों हो?
तुम्हारे साथ मैं खुद को छुपा नहीं पाती।”
वह कुछ सेकंड चुप रहा,
फिर बहुत धीरे बोला—
“शायद इसलिए… क्योंकि तुम छुपाना चाहती ही नहीं हो।”
उसकी बात ने मेरे दिल को हल्का-सा चुभोया भी
और छू भी लिया।
मैं railing पर हाथ रखकर हवा महसूस कर रही थी,
तभी आर्यन धीरे-धीरे मेरे पास आया।
उसकी उंगलियाँ मेरे हाथ को छूईं—
बहुत हल्के, बहुत सावधान स्पर्श के साथ।
मेरी साँसें तेज़ हो गईं।
मैंने अपना हाथ नहीं हटाया।
उसने उंगलियों को मेरे हाथ पर रखा,
और धीरे-धीरे उन्हें मेरी उंगलियों में पिरो दिया।
मैंने आँखें बंद कर लीं…
उस स्पर्श में एक नशा था।
एक सुकून भी,
और एक चुभन भी—
क्योंकि मैं उससे जितना करीब होती जा रही थी,
उतना ही गहरा मेरा डर बढ़ रहा था।
मैंने धीमे से कहा,
“आर्यन… मुझे तुमसे डर लगता है।
कभी-कभी लगता है कि मैं तुम्हारे बिना… बिल्कुल अकेली हो जाऊँगी।”
उसने मेरा हाथ हल्का-सा दबाया,
“अकेली?
जब तक मैं हूँ, तुम अकेली नहीं हो सकती।”
मैंने उसकी आँखों में छिपे यकीन को महसूस किया।
लेकिन पता नहीं क्यों…
मेरे अंदर एक छोटी-सी बेचैनी फिर भी रह गई।
जैसे किसी तूफ़ान का पहला संकेत हो।
हवा तेज़ हो रही थी।
मेरे बाल बार-बार चेहरे पर आ रहे थे।
आर्यन ने बिना सोचे अपने हाथ से मेरे बाल कान के पीछे किए।
उसका स्पर्श मेरी त्वचा को जलता हुआ-सा छू गया।
मेरे दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो गई थी
कि मुझे लगा वो ज़ाहिर हो जाएगी।
उसने मेरी गर्दन के पास झुककर फुसफुसाया,
“तुम्हें ऐसे… हवा में उलझा हुआ देखना बहुत अच्छा लगता है।”
मेरी टाँगें एक पल को कमजोर पड़ गईं।
मैंने उसका कलाई पकड़ ली—
ज्यादा नहीं,
बस इतना कि मुझे खुद को संभलने का एहसास हो।
वह मेरी आँखों को ऐसे देख रहा था
जैसे उसमें डूब जाना चाहता हो।
और शायद मैं भी…
मैं खुद को रोक नहीं पाई।
मैं उसकी तरफ थोड़ा और झुक गई।
उसने एक पल के लिए मुझे देखा,
और मेरी कमर के पास हाथ रखकर
मुझे अपने करीब खींच लिया।
उस पल…
मेरे भीतर सब शांत हो गया।
हर शोर, हर डर, हर उलझन—सब धीरे से गायब हो गई।
मेरी हथेली उसके सीने पर थी।
मैं उसकी धड़कन सुन सकती थी।
और वह धड़कन…
ठीक मेरी धड़कन के साथ चल रही थी।
मैंने फुसफुसाया,
“आर्यन… मुझे नहीं पता मैं क्या कर रही हूँ,
लेकिन तुमसे दूर नहीं रह पा रही।”
उसने मेरी कमर को थोड़ी मजबूती से पकड़ा।
मेरे गाल उसकी साँसों से गर्म हो रहे थे।
वह बोला,
“तो दूर मत रहो।
हमेशा यहीं रहो… मेरे पास।”
उसकी बात इतनी खूबसूरत थी
कि मेरी आँखें हल्की-सी भर आईं।
मैंने उसके कंधे पर सिर रख दिया।
उसने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया—
इतना कोमल, इतना गर्म…
जैसे वह मुझे अपने अंदर छुपा लेना चाहता हो।
मैंने उस रात पहली बार महसूस किया
कि मैं उसे सच में…
खो देने से डरने लगी हूँ।
और डर केवल तब लगता है
जब कोई इंसान दिल से ज़्यादा गहरा हो जाए।
मुझे नहीं पता था कि आने वाले दिनों में
यही डर एक हकीकत बनने वाला था,
धीरे-धीरे, बिना आवाज़ किए…
मेरे भीतर टूटने की शुरुआत हो चुकी थी।
उस रात छत पर उसकी बाँहों में होने के बाद, मुझे लगा था कि हमारी कहानी अब और खूबसूरत होने वाली है।
लेकिन शायद किसी के बहुत करीब आने के साथ-साथ एक डर भी जन्म लेता है—
डर खोने का,
डर टूटने का,
डर किसी और के आ जाने का।
अगले कुछ दिनों में मैंने महसूस किया कि आर्यन थोड़े बदले-बदले से लग रहे थे।
वह अभी भी मुस्कुराता था,
मुझसे बात करता था,
मेरे हाथ पकड़ता था…
लेकिन उसमें पहले वाली गर्माहट नहीं थी।
कभी-कभी वह मुझे देखते ही नजरें हटा लेता।
कभी मुझे लगता कि वह कुछ सोच रहा है,
कुछ छुपा रहा है।
मैं पूछना चाहती थी,
पर खुद को रोक लेती—
डर से,
कि कहीं वो सच मुझे और ज़्यादा चोट न दे दे।
एक दिन लाइब्रेरी में मैं उसका इंतज़ार कर रही थी।
वह देर तक नहीं आया।
मैं मैसेज नहीं करना चाहती थी,
क्योंकि मुझे डर था कि कहीं वो जवाब ही न दे।
आखिरकार उसने आकर कहा,
“Sorry, थोड़ा बिज़ी था।”
बस इतना ही।
ना कोई मुस्कान,
ना वो नज़र जिसमें पहले मेरे लिए नरमी होती थी।
मुझे लगा शायद मैं ही ज़्यादा सोच रही हूँ।
हम प्रोजेक्ट पर काम करने लगे,
लेकिन उसके हाथ अब मेरे हाथों के पास आने के लिए बेचैन नहीं थे।
उसकी उंगलियाँ अब मेरी उंगलियों को छूने में संकोच कर रही थीं—
या शायद कोशिश ही नहीं कर रही थीं।
मेरी उंगलियों को उसकी उंगलियों की गर्माहट की याद थी,
लेकिन वह अब दूर-दूर बैठा था।
वह शाम पहली बार हमारे बीच बहुत भारी थी।
उस दिन उसने मुझसे पूछा,
“तुम ठीक हो?”
मैंने हल्की-सी मुस्कान दी,
“हाँ, बस थोड़ी थकी हूँ।”
सच तो ये था कि मैं थकी नहीं…
डरी हुई थी।
क्लास खत्म होने के बाद मैं कैंपस गेट पर उससे मिलने गई,
जैसे हर दिन जाती थी।
लेकिन उसने कहा,
“आज मैं अपने दोस्तों के साथ जा रहा हूँ।
तुम… कल मिलते हैं।”
उसने मेरे माथे को भी नहीं छुआ,
न ही मेरे हाथ को पकड़ा।
यह पहली बार था कि वह मुझे बिना छुए चला गया।
उस रात मैं सो नहीं पाई।
मेरे दिल में जैसे कोई भारी-सा पत्थर रखा हुआ था।
क्या वह मुझे कम पसंद करने लगा है?
क्या मैंने ज़्यादा महसूस कर लिया?
क्या वह मेरे जैसा नहीं सोचता?
अगले दिन जब मैं उसे ढूँढने गई,
वह एक लड़की के साथ बातें कर रहा था।
लड़की उसके बहुत करीब खड़ी थी—
और वो…
वह मुस्कुरा रहा था।
वैसी मुस्कान…
जो पिछले दिनों मुझसे गायब थी।
मेरे कदम खुद-ब-खुद रुक गए।
मेरे दिल की धड़कन इतनी जोर से बढ़ गई कि मुझे लगा मैं वहीं गिर जाऊँगी।
मैं नहीं जानती कि वह लड़की कौन थी।
पर ईर्ष्या इंसान को सच से ज़्यादा बदसूरत सोचने पर मजबूर कर देती है।
जब उसने मुझे देखा,
उसकी मुस्कान थोड़ी फीकी पड़ गई।
वह मेरी तरफ आया और बोला,
“अन्वी… तुम यहाँ?”
मैंने खुद को संभालते हुए कहा,
“हाँ… बस यूँ ही।”
वह लड़की अभी भी वहीं खड़ी थी,
और मुझे उसकी आँखों में लगभग सब समझ आ रहा था।
मैंने धीरे से पूछा,
“तुम… मेरे साथ चलोगे?”
आर्यन ने पल भर रुककर कहा,
“अभी नहीं।
मैं… कुछ काम में हूँ।”
यह सुनकर मेरी छाती के अंदर जैसे कुछ टूट गया।
उसने मुझे कभी इतना इंतज़ार नहीं कराया था।
ना कभी किसी के लिए मुझे छोड़ा था।
मैंने खुद को संयत करते हुए कहा,
“ठीक है… जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।”
मैंने उसकी तरफ एक आखिरी नज़र डाली—
मेरी आँखों में सवाल थे,
और उसके चेहरे पर जवाब नहीं।
जब मैं मुड़कर चली गई,
तो मुझे लगा जैसे वह पल
मेरी कहानी का सबसे गहरा दर्द बनने वाला है।
उस रात मैं खुद को रोक नहीं पाई।
मैंने उसे मैसेज किया—
“अगर मैं तुम्हारे लिए बोझ बन रही हूँ…
तो मुझे बता दो।
मैं दूर हो जाऊँगी।”
उसका जवाब देर रात आया—
एक ही लाइन:
“अन्वी… कल बात करते हैं।”
बस ये लाइन।
इतनी ठंडी,
इतनी खाली,
इतनी दूर।
मुझे उसी रात पता चल गया था—
कि कल…
कुछ टूटने वाला है।
कुछ…
जो मैंने दिल से ज्यादा चाहा था।
उस रात उसका “कल बात करते हैं” वाला मैसेज मेरी नींद पूरी तरह चुरा ले गया था।
मैंने फोन को बार-बार देखा,
हर बार दिल को समझाया कि शायद कुछ बड़ा नहीं होगा,
लेकिन मन में एक अजीब-सी घबराहट थी—
जैसे नतीजा पहले से पता था,
बस सुनने की हिम्मत नहीं थी।
अगली सुबह मैं क्लास में उससे पहले पहुँच गई।
मुझे लगा वह आएगा,
मुझे देखेगा,
मेरे हाथ पकड़कर सब समझा देगा…
पर आज वह देर से आया,
और आते ही उसने मुझे देखकर मुस्कुराया भी नहीं।
उसकी आँखों में एक दूरी थी—
जो किसी रिश्ते के खत्म होने से ठीक पहले नजर आती है।
क्लास खत्म होते ही उसने कहा,
“चलो, बात करते हैं।”
मेरे कदम भारी हो गए।
हम दोनों कॉलेज के पीछे वाले गार्डन में चले गए—
जहाँ पहले हमने साथ हँसी बाँटी थी,
जहाँ उसने मेरी उंगलियाँ पहली बार पकड़ी थीं,
जहाँ मैं उससे दूर जाने की सोच भी नहीं सकती थी।
लेकिन आज…
हवा ठंडी थी,
और उसके चेहरे पर एक अजीब-सी बेचैनी।
मैंने धीमे से पूछा,
“आर्यन… क्या हुआ?”
उसने गहरी साँस ली—
जैसे कुछ भारी कहने वाला हो।
“अन्वी… मुझे नहीं पता कैसे कहूँ…
लेकिन शायद…
हम दोनों को थोड़ा दूरी चाहिए।”
मेरे अंदर किसी ने चुपचाप चाकू घोंप दिया हो,
ऐसा लगा।
मैंने काँपती आवाज़ में पूछा,
“दूरी?
क्यों?”
उसने नजरें झुका लीं।
“क्योंकि… शायद मैं वो महसूस नहीं कर पा रहा…
जो तुम कर रही हो।”
मेरे होंठ सूख गए।
मैंने उसके चेहरे को देखा—
वह सच बोल रहा था।
और वो सच मेरे दिल को तोड़ रहा था।
मैंने धीमे से कहा,
“तो…
तुम मुझे पसंद नहीं करते?”
वह चुप रहा।
और यह चुप्पी मेरे लिए किसी भी शब्द से ज्यादा दर्दनाक थी।
मेरी आँखें भरने लगीं।
“पर तुमने ही कहा था कि तुम मेरे पास रहना चाहते हो…
तुमने ही मेरा हाथ पकड़ा था…
तुम्हारी आँखें…
सब झूठ था क्या?”
वह घबराया,
“नहीं, अन्वी… झूठ नहीं था,
बस…
शायद मैं उतना गहरा नहीं था जितना तुम हो।”
मेरे होंठ काँपने लगे।
“तो तुम मुझे छोड़ रहे हो?”
उसने बहुत धीमे कहा,
“शायद… हाँ।”
उस ‘हाँ’ ने मेरे भीतर सब तोड़ दिया।
मैंने उसे देखते हुए कहा—
“और वो लड़की?
जिसके साथ तुम बातें कर रहे थे…
क्या वो वजह है?”
आर्यन चौंका,
“नहीं! वो सिर्फ मेरी क्लसमेट है।
अन्वी, प्लीज़… ऐसा मत सोचो।”
लेकिन मेरा दिल तड़प रहा था।
कभी-कभी सच्चाई कारण नहीं होती—
दूरी ही वजह बन जाती है।
मैंने आँसू रोकते हुए कहा,
“तुम जानते हो…
मैंने पहली बार किसी को इतना करीब आने दिया था।
पहली बार…
और तुम ही चले जा रहे हो।”
मेरी आवाज़ टूट गई।
वह कुछ पल खामोश रहा,
फिर बोला—
“मैं तुम्हें चोट नहीं पहुँचना चाहता था।
बस… मैं झूठ लेकर तुम्हारे साथ नहीं रह सकता।”
मैं उसके सामने खड़ी थी,
लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई।
मैंने बहुत धीमे, टूटे हुए स्वर में कहा—
“अगर तुम झूठ नहीं जीना चाहते…
तो मैं मजबूर नहीं कर सकती।”
मेरी आँखों से आँसू अपने आप बहने लगे।
मैंने उन्हें पोंछा भी नहीं।
क्योंकि पोंछने से क्या बदलता?
वह मेरे करीब आया,
शायद मेरे आँसू रोकना चाहता था…
पर मैंने एक कदम पीछे हटकर कहा—
“अब मत छूना…
अब बस मत।”
मेरी आवाज़ इतनी भारी थी कि शब्द टूट रहे थे।
मैंने उसके चेहरे को आखिरी बार देखा।
उस चेहरे को…
जिसमें कभी मेरा सुकून था,
अब सिर्फ दूरी थी।
मैं मुड़ी…
और चलती गई।
पीछे मुड़कर नहीं देखा—
क्योंकि पता था,
अगर एक बार मुड़ी
तो टूटकर वहीं गिर जाऊँगी।
उस दिन…
सिर्फ मेरा दिल नहीं टूटा,
मेरी भोली उम्मीदें भी टूट गईं।
जिस हाथ को पकड़कर मैंने खुद को पूरा महसूस किया था,
वही हाथ अब खाली था।
और सबसे बुरी बात—
मैंने उससे कुछ नहीं कहा,
पर अंदर से मैं जानती थी…
वह मेरा पहला प्यार नहीं था,
वह मेरा पहला दर्द था।
ब्रेकअप वाली शाम मैं बहुत देर तक कैंपस के बाहर खड़ी रही।
लोग आते-जाते रहे,
रोशनी बदलती रही,
हवा ठंडी होती गई…
लेकिन मैं जैसे किसी अदृश्य जगह पर अटक गई थी।
मेरे पैरों में ताकत ही नहीं थी,
मानो दिल टूटने ने शरीर से भी हिम्मत निकाल ली हो।
जब मैं हॉस्टल पहुँची,
तो कमरे में घुसते ही दरवाज़ा बंद किया और सीधे फर्श पर बैठ गई।
मेरी आँखों से आँसू बिना रुके बह रहे थे—
इतने कि मुझे याद ही नहीं कब आखिरी बार मैंने इतनी जोर से रोया था।
मैंने अपना फोन उठाया,
उसका चैट खोला,
उसकी प्रोफाइल फोटो देखी…
लिखा हुआ “Online” देखा…
और फिर भी उसने कुछ नहीं लिखा।
मैं चाहती थी वो एक बार पूछ ले,
एक बार कह दे “Are you okay?”
एक बार… सिर्फ एक बार।
लेकिन उसके ‘Online’ रहने और चुप रहने के बीच
मेरी दुनिया और टूट रही थी।
मैंने हिम्मत कर मैसेज टाइप किया—
“तुमने मुझे इतना जल्दी कैसे छोड़ दिया?”
मैंने भेजा नहीं।
Delete कर दिया।
क्योंकि सच्चाई ये थी—
जवाब कुछ भी आए,
चोट कम नहीं होने वाली थी।
उस रात मैं बत्ती बुझाकर बिस्तर पर नहीं गई।
फर्श पर ही बैठी रही,
घुटनों पर सिर रखकर,
अपनी ही साँसों में रोती रही।
मुझे लग रहा था जैसे किसी ने मेरे अंदर से कुछ छीन लिया हो।
कुछ ऐसा…
जिसे मैं खुद नहीं पहचान पा रही थी।
अगले दिन कॉलेज जाना दुनिया की सबसे मुश्किल चीज़ लग रही थी।
लेकिन गई।
खुद को मजबूत दिखाने का नाटक करते हुए।
कैंपस के गेट पर मैं रुकी—
क्योंकि डर था कि अगर वो दिख गया तो?
और हुआ भी वही।
आर्यन दूर चलता हुआ दिखाई दिया…
हँसते हुए,
दोस्तों के साथ।
एक पल को मेरी साँस अटक गई।
मैं किसी पत्थर की मूर्ति की तरह वहीं जम गई।
वो मेरे पास से गुज़रा।
उसकी नज़र मुझ पर पड़ी,
लेकिन उसने बस हल्की-सी सिर हिलाकर “हाय” कहने जैसा इशारा किया—
जैसे मैं उसके लिए कोई क्लास की जान-पहचान भर हूँ।
बस इतना।
इतना छोटा…
इतना सामान्य…
इतना चुभता हुआ।
मैं उसी पल समझ गई—
मेरे अंदर की दुनिया जितनी भी टूटी हो,
उसकी दुनिया में शायद कुछ भी नहीं टूटा।
मैंने वहीं मुड़कर कैंपस छोड़ दिया।
मुझे क्लास, नोट्स, प्रोजेक्ट—कुछ नहीं चाहिए था।
मुझे सिर्फ अकेलापन चाहिए था जिसमें मैं टूट सकूँ…
कमरे में पहुँचते ही मैं बिस्तर पर गिर पड़ी।
आज रोना नहीं आया।
आज सिर्फ खालीपन था।
एक ऐसा खालीपन जो अंदर से खा रहा था,
धीरे-धीरे,
शोर किए बिना।
रात को मैंने उसकी बातचीत याद की,
उसका हाथ पकड़ना,
मेरी कमर पर उसकी पकड़,
मेरी गर्दन के पास उसका झुकना…
और फिर वही सवाल घूमता रहा—
अगर सब इतना गहरा था
तो वो इतनी आसानी से दूर कैसे चला गया?
क्या प्यार में सिर्फ महसूस करना काफी नहीं होता?
क्या दिल की सच्चाई भी कभी कम पड़ जाती है?
उस रात मैंने खुद से एक वादा किया—
कि मैं उसे मैसेज नहीं करूँगी,
फोन नहीं करूँगी,
उसके पीछे नहीं भागूँगी।
पर दिल बात कहाँ मानता है?
विडंबना ये है—
जिसे छोड़ने का इसने फैसला कर लिया,
मैं वही इंसान भूल ही नहीं पा रही थी।
और शायद…
यही प्यार की सबसे बड़ी सज़ा है।
जिसे दिल चाहे,
उसे दिमाग छोड़ नहीं पाता।
और मैं…
उस अँधेरी रात में अकेले बैठे-बैठे
सिर्फ एक बात समझ पाई—
मैंने उसे नहीं खोया था,
उसने मुझे खो दिया था।
लेकिन जो खोता है…
दर्द हमेशा उसी को होता है जिसने दिल से चाहा हो।
और मैंने…
उसे बहुत दिल से चाहा था।















