मैंने कभी नहीं सोचा था कि प्यार किसी को इतना अंधा बना सकता है।
मैंने कभी नहीं सोचा था कि किसी की मुस्कान, किसी की आवाज़, किसी की आँखें…
इतनी गहरी भी हो सकती हैं और इतनी खतरनाक भी।
उससे मेरी मुलाकात बस एक कॉलेज ग्रुप प्रोजेक्ट से हुई थी।
पहली बार जब मैं उसके सामने बैठी,
उसकी बातें सुनकर मुझे लगा—
शायद दुनिया में ऐसे लोग अभी भी होते हैं
जो बेहद सच्चे, बेहद गहरे, और बेहद अच्छे हों।
उसका नाम नील था।
और मेरा नाम,
अन्वी।
नील की आँखों में एक अजीब-सी चमक थी—
जैसे वो मुझे समझ भी रहा हो, और पढ़ भी रहा हो।
वह हर छोटी बात पर मुझे मुस्कुराने की कोशिश करता,
और मैं…
मैं धीरे-धीरे उसकी तरफ खिंचती चली गई।
वह कहता,
“तुम मेरे लिए खास हो।”
और मैं चाहकर भी उसके शब्दों पर शक नहीं कर पाती थी।
कुछ दिनों में हमारी बातें सुबह से रात तक होने लगीं।
मैं हँसती थी,
वह सुनता था।
मैं रोती थी,
वह दिलासा देता था।
मैं डरती थी,
वह गले लगाने की बात करता था।
सब कुछ इतना खूबसूरत लग रहा था
कि मुझे लगा—
शायद यही वो इंसान है
जिसे मैं जिंदगी में ढूँढती आई हूँ।
लेकिन मैं ये नहीं जानती थी
कि वह मेरे दिल का इस्तेमाल कर रहा है…
मेरे शरीर का नहीं,
मेरी भरोसे का।
एक दिन उसने कहा,
“तुम्हें मेरी बाँहों में सबसे ज्यादा सुकून मिलेगा।
आओ न, बस थोड़ी देर पास बैठो।”
वह मुझे छूता नहीं था,
बस मेरे बहुत करीब बैठता था—
इतना करीब कि उसकी साँसें मेरी गर्दन को हल्का-सा छूतीं
और मैं काँप जाती।
वह मुझे पकड़ता नहीं था,
लेकिन उसकी उंगलियाँ मेरी उंगलियों के बीच ऐसे फिसल जातीं
जैसे वह मेरे अंदर उतर रहा हो।
मेरे लिए वो स्पर्श,
वो पल…
सब प्यार था।
पर उसके लिए?
सड़क पर मिलने वाले किसी भी attention से ज्यादा कुछ नहीं।
धीरे-धीरे उसने मेरा पूरी तरह भरोसा पा लिया।
मैं उसे अपनी हर बात बताती थी,
अपने डर, अपने सपने, अपने जख्म…
और वह सब सुनकर मुझे बेहद अपनापन देता।
लेकिन सच ये था—
वह सिर्फ सुनता था,
महसूस कभी नहीं करता था।
वह कहता,
“मुझे तुम्हारी ज़रूरत है।”
और मैं हर बार टूटकर उसके पास चली जाती।
फिर एक दिन
मैंने उसे कॉलेज कैंटीन में एक लड़की के साथ बैठे देखा—
वो उसे उसी तरह मुस्कुरा कर देख रहा था
जैसे कभी मुझे देखा करता था।
वह उसके हाथ को वैसे ही छू रहा था,
जैसे वह मेरे हाथ को छूकर कहता था,
“तुम मेरे लिए खास हो।”
मेरे पैर वहीं रुक गए।
मेरी साँसें रुक गईं।
मेरा दिल एकदम ठंडा पड़ गया।
मैंने उससे पूछा,
“ये कौन है?”
वह हँसकर बोला,
“ओह, यह?
बस एक दोस्त है।”
मैंने उस लड़की की आँखों में झाँककर देखा—
और वहीं समझ गई
कि वह वही बातें,
वही स्पर्श,
वही भावनाएँ
उसे भी दे रहा था।
मैंने उससे कहा,
“नील… तुमने मुझसे झूठ बोला?”
वह बिना झिझक बोला,
“झूठ नहीं बोला।
बस… तुमने ज़्यादा सोच लिया।”
उस पल
मेरे दिल को लगा जैसे किसी ने मुट्ठी में दबाकर तोड़ दिया हो।
मैंने काँपती आवाज़ में पूछा,
“तो तुमने जो बातें कीं,
जो वादे किए…
वो सब क्या था?”
वह हल्का सा मुस्कुराया—
एक ऐसी मुस्कान
जो अब मेरे दिल में ज़हर बन चुकी है।
“सब कुछ सिर्फ…
थोड़ी company चाहिए थी, बस।
तुम sweet हो, आसानी से connect होती हो।
Take it easy, अन्वी.”
Take it easy.
ये तीन शब्द
मेरी दुनिया को चीरकर दो टुकड़ों में बाँट गए।
जिसे मैंने अपना सब कुछ माना,
वह मुझे सिर्फ timepass समझ रहा था।
मैंने उसकी तरफ देखा,
मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे।
मैंने उससे कहा—
“तुमने मेरे दिल का इस्तेमाल किया…
और मैं प्यार समझती रही।”
उसने शांत चेहरा बनाए कहा—
“तुम खुद को संभालो।
प्यार को इतना गंभीर क्यों लेती हो?”
मैं वहाँ से चल दी।
पीछे मुड़कर नहीं देखा।
क्योंकि सच ये था—
वह कभी मेरा था ही नहीं।
और मैं…
मैंने आज सीखा
कि कुछ लोग प्यार नहीं चाहते,
उन्हें सिर्फ कोई चाहिए होता है
जो उन्हें चाहती रहे।
मैं वही बन गई थी—
एक चाहत।
एक इस्तेमाल की गई चाहत।
लेकिन अब…
अब नहीं।
अब मैं खुद को वापस चाहूँगी।
खुद को वापस पाऊँगी।
और उसे वहीं छोड़ दूँगी—
जहाँ उसने मुझे छोड़ा था।
नील के “take it easy” कहने के बाद मैं बाहर आई,
लेकिन ऐसा लग रहा था कि मैं किसी भारी कमरे से निकलकर
सीधे खाली सड़क पर आ गई हूँ।
दिल खाली,
साँस भारी,
और आँखें जलती हुई।
मैंने खुद को कई बार ये समझाने की कोशिश की
कि यह सिर्फ एक लड़का था,
एक इंसान…
लेकिन उससे जो टूटन आई थी
वह सिर्फ दिल की नहीं थी—
वह मेरे भरोसे की भी थी।
मैं हॉस्टल के कमरे में पहुँची।
आईने में खुद को देखा—
सूजी हुई आँखें,
लाल नाक,
उलझे बाल।
मैंने खुद से पूछा—
“क्या मैं इतनी कमजोर हूँ
कि किसी की फेक स्माइल ने मुझे तोड़ दिया?”
अगले कुछ दिन
मैं इतनी चुप हो गई कि मेरी दोस्त भी डर गई।
न भूख लगती,
न नींद आती,
न बात करने का मन।
लेकिन अंदर कहीं छोटा-सा गुस्सा भी उभर रहा था—
गुस्सा उस पर नहीं…
खुद पर।
कि मैंने खुद को इतना आसान बना दिया
कि उसने मेरे दिल को खिलौना समझ लिया।
एक रात
मैंने खुद को कह दिया—
अब और नहीं।
मैंने अपना फोन उठाया,
नील का चैट खोलकर
उसके सारे मैसेज
एक-एक करके delete कर दिए।
हर मैसेज delete होते ही
ऐसा लगा जैसे एक कड़वा काँटा दिल से निकल रहा हो।
मैंने उसकी तस्वीर भी हटा दी।
उसका नंबर block किया।
सब खत्म।
अगले दिन
मैंने खुद को क्लास में खींचकर ले गई।
वहीं सामने नील खड़ा हुआ था—
अपने usual group, usual attitude के साथ।
मुझे देखते ही उसने वही half-smile दी
जो पहले मुझे पिघला देती थी।
आज…
उस मुस्कान में मुझे सिर्फ प्लास्टिक दिखा।
मैं उसके पास से सिर ऊँचा करके ऐसे गुज़री
जैसे वह हवा का एक टुकड़ा हो।
उसका चेहरा जम गया।
शायद उसने ऐसा expect नहीं किया था।
मैं अपनी सीट पर बैठ गई,
दिल तेज़ धड़क रहा था…
लेकिन बाहों में हिम्मत थी।
लाइब्रेरी में उस दिन पहली बार
मैं अकेली बैठकर पढ़ाई कर रही थी।
मेरे कानों में उसका नाम भी अच्छा नहीं लगता था।
इसी बीच
एक सीन हुआ—
नील वहाँ आया,
सामने खड़ा हो गया।
वह बोला,
“अन्वी… बात कर सकती हो?”
मैंने बिना उसकी तरफ देखे कहा,
“नहीं।
क्योंकि तुमसे बात करने की ज़रूरत…
अब खत्म हो चुकी है।”
वह थोड़ा असहज हुआ।
“तुम इतना नाराज़ क्यों हो गई?
मैंने कुछ गलत नहीं किया।”
मैंने पहली बार उसकी आँखों में देखकर कहा—
“गलत करना और गलत होने से इनकार करना
दोनों अलग बातें हैं, नील।”
वह चुप हो गया।
मैंने धीरे से किताब बंद की,
अपना बैग उठाया,
और बोली—
“जिसे तुम खेल समझते हो,
उसे मैं दिल से जीती हूँ।
और मैं कभी किसी के खेल का हिस्सा नहीं बनूँगी।”
मैं वहाँ से उठकर चली गई।
नील वहीं खड़ा रह गया—
चुप,
बिना शब्दों के,
बिना जीत के।
उस रात
लंबे समय बाद
मैंने अपनी आँखें बंद कीं
और पहली बार
मुझे नींद आई।
क्योंकि आज
पहली बार
मैंने खुद को चुना था।
दिन गुजरते गए।
मैं पहले से ज्यादा हँसने लगी,
ज़्यादा दोस्तों से मिलने लगी,
खुद को समय देने लगी।
फिर एक दिन
कॉलेज के गेट पर
नील अकेला खड़ा था।
उसने मुझे रोककर कहा—
“अन्वी… क्या हम बात कर सकते हैं?
मुझे लगता है… मैंने तुम्हें ग़लत समझा।
तुम्हारे जाने के बाद…
कुछ कमी लगती है।”
मैंने उसे मुस्कुराकर देखा—
एक शांत, मजबूत मुस्कान।
“नील…
जिस दिन तुमने मेरा इस्तेमाल किया था,
उसी दिन तुमने मुझे खो दिया था।
कमी तुम्हें लगेगी…
क्योंकि तुम्हें आदत थी कि कोई तुम्हें प्यार दे।
लेकिन मैंने सीखा है—
प्यार वो नहीं जो दिल तोड़ दे।
और मैं वो नहीं
जो टूटकर वापस लौटे।”
मैं चली गई।
मेरा दिल पहली बार हल्का था—
नील ने मुझे तोड़ा था,
लेकिन उसी टूटन ने मुझे मजबूत बना दिया।
और उस दिन से
मेरी कहानी उसकी नहीं रही…
मेरी रही।
मैंने सोचा था कि नील मुझे सिर्फ भावनाओं में इस्तेमाल कर रहा था,
मैंने ये नहीं सोचा था कि वह मेरे शरीर का भी फायदा उठाएगा…
और इतनी आसानी से,
इतनी चालाकी से,
इतनी प्यार भरी आवाज़ में।
उस दिन, कैंपस के पीछे वाली खाली जगह पर उसने मुझे अपने पास खींचा था।
मुझसे कहा था—
“तुम मेरी हो, सिर्फ मेरी।
मैं तुम्हें कम नहीं चाहता…
मैं तुम्हें पूरी चाहता हूँ।”
उसकी बाँहों की गर्माहट,
उसका पास आना,
उसकी उंगलियों का मेरी पीठ को छूना…
मैंने सब कुछ प्यार समझ लिया था।
मैं खो गई थी —
उसके शब्दों में,
उसकी आँखों में,
उसकी आवाज़ में।
वह हर बार मुझे कहता—
“इससे हमें करीब होने में मदद मिलती है।”
“यह प्यार है, अन्वी… तुम मुझे रोक क्यों रही हो?”
“अगर तुम सच में मुझे चाहती हो, तो मुझे महसूस होने दो।”
मेरे अंदर एक मासूम लड़की थी
जो प्यार को समझना चाहती थी…
और वह मेरे उसी मासूम हिस्से का इस्तेमाल करता रहा।
हर बार के बाद
वह मुझे अपनी बाहों में लेकर कहता,
“तुम मेरी जान हो… किसी को मत बताना।
हमारी ये नज़दीकियाँ सिर्फ हमारी हैं।”
और मैं…
मैं इस भ्रम में थी कि हमारे बीच कुछ सच है।
लेकिन एक दिन
सब खत्म हो गया।
मैं कैंपस के पीछे से आ रही थी
जब मैंने उसे उसी लड़की के साथ देखा
जिसके बारे में उसने कहा था—
“बस क्लासमेट है।”
उस लड़की की आँखों में शर्म नहीं,
हक़ दिखाई दे रहा था।
और उनके बीच की नज़दीकियाँ…
वह सिर्फ इशारे नहीं थे—
वह एक कहानी था
जो नील उसके साथ भी खेल रहा था।
मैंने हिम्मत कर पूछा—
“नील, ये क्या है?”
वह मुस्कुराकर बोला,
“अरे… हम तो बस…
थोड़ा टाइमpass कर रहे थे।”
मैंने काँपते हुए कहा,
“और मैं?
मैं क्या थी तुम्हारे लिए?”
उसका जवाब…
मैं शायद जिंदगी भर नहीं भूलूँगी।
“तुम?”
वह हँसा।
“तुम तो बस…
थोड़ी emotional हो।
तुम आसानी से भरोसा करती हो।
मुझे पता था तुम ना नहीं बोलोगी।”
मेरे अंदर कुछ टूटकर गिर गया।
मेरी साँसें भारी हो गईं।
मुझे लगा जैसे मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई हो।
मैंने काँपती आवाज़ में कहा,
“तो…
हमारे बीच जो हुआ…
वो सब?”
उसका चेहरा एकदम ठंडा था।
“वो सब बस chemistry थी।
तुमने खुद ही दिया।
मुझे मजबूर नहीं किया मैंने।
Don’t act innocent.”
उसकी ये बात सुनकर
मेरी आँखें भर गईं।
मेरी त्वचा में जैसे आग लग गई।
मुझे अपने ही शरीर से घिन आने लगी।
हर स्पर्श…
हर नज़दीकी…
हर वो पल जिसमें मैं खुद को उसके हवाले कर गई थी—
सब मुझे काटने लगे।
मैंने उसे फुसफुसाकर कहा,
“नील… तुमने मेरे दिल के साथ नहीं,
मेरी इज़्ज़त के साथ खेला है।
मैंने तुम्हें खुद को दिया
क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करती थी।
और तुमने…
तुमने मुझे इस्तेमाल किया।”
वह हँसा।
“अन्वी, grow up.
प्यार में ऐसा होता है।
सब physical होता है।
Drama मत करो।”
मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे।
मैंने उसे आखिरी बार देखा—
नफ़रत से नहीं…
अपने ही टूटे हुए हिस्सों को लेकर।
मैं लौटकर कमरे में आई,
और खुद को शीशे में देखा—
एक लड़की
जिसने एक राक्षस को ‘प्यार’ समझ लिया था।
मेरे हाथ काँप रहे थे।
मुझे अपनी त्वचा पर उसके हर स्पर्श की गंदगी महसूस हो रही थी।
जिसे मैं कभी सुकून समझती थी,
आज वही याद
मेरे सीने पर पत्थर बनकर बैठ गई।
मैं रोई—
जितना कभी नहीं रोई थी।
हर याद निकालना चाहती थी।
हर छूना भूल जाना चाहती थी।
लेकिन शरीर…
यादें इतनी आसानी से भूलता नहीं।
मुझे खुद से घिन आ रही थी।
लेकिन सच ये था—
मेरी गलती सिर्फ एक थी:
मैंने किसी गलत इंसान को
अपने दिल और शरीर दोनों का हक़ दे दिया था।
और उसने…
दोनों को कुचल दिया।
उस दिन मुझे समझ आया—
प्यार कभी तुम्हें गंदा महसूस नहीं कराता।
प्यार कभी धोखा नहीं देता।
और जो इंसान बार-बार मांगता है
पर कभी देता नहीं—
वह तुमसे प्यार नहीं करता,
वह सिर्फ तुमको इस्तेमाल करता है।
और मैं…
आज से खुद को वापस पाना शुरू करूँगी,
चाहें जितना वक्त लगे।
क्योंकि मेरी कीमत
उसके बस की बात नहीं थी।
नील के धोखे के बाद
मैं सिर्फ उससे नहीं टूटी थी…
मैं खुद से भी टूट गई थी।
उसके जाने के बाद
जब भी मैं आईने में खुद को देखती,
मुझे अपना ही चेहरा अजनबी लगता था।
मेरी आँखों में वो मासूमियत नहीं थी
जो कभी थी…
उसकी जगह एक डर बैठ गया था —
ऐसा डर जिसे मैं किसी से कह भी नहीं सकती थी।
मैं अपने कमरे में बैठकर
घंटों ये सोचती रहती —
अगर एक दिन मेरी शादी किसी अच्छे इंसान से हो गई…
और वो सच में मुझे प्यार करे…
तो क्या मैं उसे अपना सब कुछ दे पाऊँगी?
क्या मैं खुद को माफ कर पाऊँगी?
ये सोचकर मेरे दिल पर फिर वही पुराना भार आ जाता।
मैं खुद से सवाल करती —
“क्या मैं गंदी हूँ?
क्या मैं किसी अच्छे इंसान के लायक हूँ?”
और जवाब…
हमेशा खामोशी होता था।
मैं रातों को सो नहीं पाती थी।
हर बार नींद आने से पहले
एक ही ख्याल आता —
“अगर मेरा होने वाला पति सच में अच्छा निकला…
तो क्या मैं खुद को माफ करके उसके लायक बन पाऊँगी?”
कभी-कभी तो मेरे दिल में ये डर इतना बड़ा हो जाता
कि मैं रोते-रोते खुद से कहती —
“काश, मैंने नील को कभी पास आने ही न दिया होता…”
लेकिन फिर एक आवाज़ आती —
“तुम बच्ची थीं… तुम्हें प्यार चाहिए था… गलती तुम्हारी नहीं थी।”
पर चाहे यह बात कितनी भी सही हो,
मेरा दिल फिर भी खुद को दोष देता रहता।
एक दिन मेरी दोस्त श्रेया ने पूछा,
“अन्वी… तुम खुद को क्यों इतना दोष दे रही हो?
नील ने तुम्हारा इस्तेमाल किया,
तुमने नहीं।”
मैंने धीमे से कहा,
“लेकिन शादी के बाद…
अगर मेरा पति सच में बहुत अच्छा हुआ…
बहुत साफ दिल का…
तो?
अगर उसे मेरे अतीत के बारे में पता चला
तो क्या मैं उसकी आंखों में देख पाऊंगी?
क्या मैं खुद को माफ कर पाऊंगी…?”
मेरी आवाज़ टूट गई।
श्रेया ने मेरा हाथ पकड़ा,
“अन्वी…
जो इंसान तुम्हें सच में प्यार करेगा
वह तुम्हें तुम्हारे अतीत की वजह से नहीं छोड़ेगा।
वह तुम्हारी सच्चाई, तुम्हारा दर्द, तुम्हारी ईमानदारी देखेगा…
ना कि किसी धोखेबाज़ के किए हुए गुनाह।”
लेकिन मैं…
मैं उसकी बात समझना चाहती थी
पर मेरा दिल मान ही नहीं पा रहा था।
रात को मैं बिस्तर पर लेटी हुई
छत की तरफ देख रही थी,
और अचानक आँसू बहने लगे।
मैंने धीमे से खुद से कहा —
“अगर मेरा होने वाला पति सच में अच्छा निकला…
तो मैं पहली रात खुद को कैसे संभालूँगी?
क्या मैं उसे सब बता पाऊंगी?
क्या मैं उसे खोने के डर से हमेशा परेशान रहूँगी?”
हर सवाल
मेरे दिल को और तोड़ देता।
लेकिन फिर धीरे-धीरे
मेरे अंदर एक आवाज़ उठी —
बहुत धीमी, बहुत नाज़ुक,
लेकिन पहली बार…
सीधी मेरी आत्मा से।
उसने कहा—
“अन्वी…
जिसे तुमसे सच में प्यार होगा,
वह तुम्हें बचाएगा —
तुम्हारे अतीत से नहीं,
तुम्हारी खुद की सोच से।”
इस बात ने पहली बार
मेरे टूटे दिल को ज़रा-सा सहलाया।
और मुझे लगा…
शायद
थोड़ा-सा ही सही,
मैं ठीक होना शुरू कर रही हूँ।
लेकिन सच ये था —
अतीत की ये चुभन
अभी भी हर सांस में थी।
और मैं…
अभी भी खुद को माफ नहीं कर पा रही थी।
लेकिन आज
इतना समझ में आ गया—
गलती मैंने नहीं की थी।
गलत इंसान मैंने चुन लिया था।















